शुक्रवार, 31 जनवरी 2014









प्रकृति 


प्राकृतिक सौंदर्य आकर्षित करता अपनी ओर 



सुंदरता देखो प्रकृति की बिखरी चारों ओर 
कहीं नीम कहीं अशोक कहीं पीपल है घोर 
लाल गुलाब से सुर्ख है 
धरती के गोरे गोरे गाल 
लिली मोगरा और चमेली 
देखो मचा रहे धमाल 
देखो हिम से ढका हिमालय 
नंदा की ऊंची पर्वत  चोटी 
कल कल करती बहती देखो 
गंगा यमुना की निर्मल धारा 
प्रकृति ने हम सब को दिया 
जीवन का अनुपम सन्देश 
आओ मिटाये मन की दूरी 
दूर हटाये कष्ट कलेश !!!


दिनेश सक्सेना




तुम्हारी  याद 


भूली बिसरी यादें


अपने जीवन के आख़री पड़ाव तक 
स्वम को पा कर सोचूंगा खड़ा होकर 
तुम पास होती तो अच्छा होता 
तम घना जब घिरने लगेगा 
अंत तब मेरे इंतज़ार का होगा 
उस पार से कोई मुझे बुलाने लगेगा 
तब ह्रदय पटल खोल तुम्हे ढूंढ़ने का 
मै फिर अंतिम प्रयास करूंगा 
पल पल क्षण क्षण मै याद करूँगा 
ख़ुशी ,गम अवसाद या हो व्याकुलता 
कोई अन्य नहीं ,सारे  रूप वक़्त ही धरता 
जब मै अंतिम पलों मे
इन सब पर विचार करूँगा !!!

दिनेश सक्सेना






मानवता


भूले क्यों मानवता का अर्थ?
कुछ जो दूजों से अधिक समर्थ
पापी अट्टाहस करते घूम रहे,
सहमी हुई है हर सुकुमारी
मानवता आज बैठी है हारी

रिश्तों का मतलब रहा नहीं
नारी ने क्या-क्या सहा नहीं
असंख्य रूप धरे दुशासन,
करते है वस्त्रहरण की तैयारी
मानवता आज बैठी है हारी


दिनेश  सक्सेना

कुल्हड़ 


कुछ बीते बिखरे पल 




जब टूटा दिल का कुल्हड़!
तो आँखों से बही नीर नदियां !!
बंद आँखों से भी निकल दर्द बहा !
ढलका धार बनके खारा पानी !!
समझा नहीं तुमने फिर भी !
कीमत समझेगा कौन इस खारे  जल की !!
पिघलती नहीं आंसुओं से कठोर नियति!
कुछ तो हल्का हुआ होगा रो रो कर जिया!!
कल जब तुमने संग छोड़ दिया !
अब कहाँ ठीकाना मेरे कल का !!!!


दिनेश  सक्सेना

कल्पना 


नित नूतन क्षण क्षण पल पल 
एक कहानी तुम हो ऐसी 
जैसे एक नया गीत पृष्ट पृष्ट 
कहानी तुम हो गीत भरी 
स्वर बसे सप्त रंगों मे 
पृष्ट रचे है सप्त रंगों मे
बंधा है जीवन सप्त चक्र मे 
तुम दिवानी  ऐसी इन सबसे दूर 


दिनेश सक्सेना

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

अभिव्यक्ति 


कह नहीं पाती  उसे जुबान जब 
भर आती आँखों मे पीड़ा तब 
कह जाती है आंसुओं की बूंदे 
नीर बहाता हूँ मैं जाने कब से 
नहीं  पाता अभिव्यक्ति पर 
अभिव्यक्ति वेदना कि क्या
नहीं समझ सकी तुम अश्रु को 
ढाल शब्दों  मे आंसुओं को 
करना चाहता हूँ मुखर इन्हे 
किन्तु अभिव्यक्ति नहीं पाता हूँ 
अपने ही जीते जागते अस्तित्व की 
होते है गीत मीठे कितने 
उनमे होती पीड़ा उतनी 
अपनी इस पीड़ा से ह्रदय भर आया 
रचना चाहता हूँ एक गीत नया 
लेकिन अभिव्यक्ति नहीं पाता  हूँ 
अपने ही बिखरे अस्तित्व की 


दिनेश  सक्सेना

अंतर्मन


जिस पल में हो एहसास तेरा,
उस पल की आभा क्या कहना।
जिन गीतों में हो नाम तेरा,
उन गीतों का फिर क्या कहना ||
अंतर्मन में हो बसे हुए,
ये भाव नहीं ये तुम ही हो।
ये भाव न मुझसे शब्द हुए,
इन शब्दों में भी तुम ही हो।


दिनेश  सक्सेना

याद 


लज्जा से झुकती हैं वे
उत्सुकता से उठती हैं
अधरों से भी अधिक मुखर
बातें प्रेम की करती हैं
कजरारी, मनभावन, चितवन
ऐसी हैं अँखिया शरमाती
जिसकी याद हमें है आती
चलो मन ढूंढे अपना साथी


दिनेश  सक्सेना

चंचलता 


चंचल तन चंचल मनं चंचल तेरी चितवन  
चंचल ऐसे पारा खेले ,हलचल करे मेरा मनं
चंचलता ही मनं मे समाई ,चंचलता नैनों मे
चंचलता का मधुपान किया ,चपल हो नयन 
मैंने तो हाला  पी,तेरी चंचलता की ,भूल गया
अब विरह का विषपान किया है ,तुम अनभिज्ञ
कहाँ खोजू  तुझको ,इसका भी कुछ  भान नहीं
मनं की चंचलता भूल गया त्याग  तुझे  चंचल


दिनेश  सक्सेना

बुधवार, 29 जनवरी 2014

राहुल गांधी और दंगे 

कांग्रेस उपधाय्क्ष राहुल गांधी का  1984 के दंगे और गुजरात के 2002 के दंगों पर अलग अलग नजरिया है !जबकि सिख विरोधी दंगों के समय उनके स्वर्गीय पिता राजीव गांधी प्रधान मंत्री थे ,2002 के गुजरात दंगो के दौरान नरेंद्र मोदी मुख्या मंत्री थे !राहुल का कहना है कि सिख विरोधी दंगे रोकने  की केन्द्र सरकार ने भरसक कोशिश की थी ,हालाँकि यही बात वोह गुजरात दंगो के लिए नहीं कहते !वोह सीधे उन्हे गुजरात दंगो का कसूरवार ठहराते है !जाहिर है यह सब बातें उन्होंने उस समय कही है जबकि अनेक ओपिनियन पोल मे कांग्रेस पार्टी को भा जा पा से काफी पीछे दिखाया जा रहा है !

मध्य प्रदेश ,राजस्थान ,छत्तीसगढ़ और देहली के विधान सभा चुनाव मे कांग्रेस ने जिस तरह मुँह की खायी है ,उसे देखते हुऐ पार्टी अपने को फिर से सेक्युलर वादी स्तिथि कि ओर जाने की ही रण नीति बना रही है !इससे पहले मुज़फ्फरनगर दंगा पीड़ितों के बीच जब कांग्रेस अध्यक्ष दोवारा पहुंचे तो यही कहा गया कि उनकी इसके पीछे सांप्रदायिक सदभावना और संवेदना बनाये रखना ही उद्देश्य एवम रणनीति है !केंद्र सरकार UPA के कार्यकाल मे जिस तरह भृष्टाचार के बड़े बड़े मामले सामने आये है ,राहुल उसे अगुवाई करने वाली सरकार कि विफलता नहीं मानते !जबकि इस देश मे भृष्टाचार विरोध का एक सघन माहौल बना है !ऐसे मे जनता भी अच्छी तरह समझती है कि कांग्रेस एक बार फिर अपनी वोट बैंक कि राजनीति पर ही अपनी डूबती नैया पार लगाने के लिए मजबूर है ! इस लिए भले ही राहुल गाँधी पार्टी के अंदर नैतिकता और पारदर्शी सोच की बात करे खुद उनका सयासी आचरण बिलकुल इसके विपरीत है !


दिनेश सक्सेना 

नैतिक दायीत्व

नैतिक दायीत्व 

आज राजनीती मे अधिकाँश रूप से अयोग्य लोग सम्मिलित हो गए है, यदपि कुछ अपवाद भी है !यदि परिस्थिति का आंकलन करे तो ज्ञात होगा कि देश मे  राजनीतिक हालात कोई बहुत अच्छे नहीं है !अपितु यह कहना होगा कि दिन पर दिन राजनीतिक हालात और बिगड़ते ही जा रहे  है जिसके लिए हमारे नेता ही जिम्मेदार है !अब समय आ गया है कि कि नेता अब अपने  उत्तरदायित्वों को अच्छी तरह समझे और बिगड़ते हालात पर काबू पाने का प्रयास करें !नेताओं को इस पर भी विचार करना होगा कि वो अपने पद और भूमिका को समझे तथा उसके अनुरूप कार्य करें एवं अपने नैतिक दायत्वों को भली भांति समझे ,विचार इस पर भी नेताओं को करना होगा कि उनके दायत्वों का पतन क्यों हो रहा है वोह क्यों पथ भ्रष्ट हो गए है !

सर्वोपरि देश हित होना चाहिए किन्तु यहाँ अब व्यक्तिगत स्वार्थ और लाभ तक ही सीमित हो गए नेता आखिरकार कैसे देश का उद्धार करेंगे !अधिकाँश रूप से नेता वोट और कुर्सी के प्रति आसक्त हो गए है !उनकी तमाम चिंतायें वोट बैंक और कुर्सी को बचायें रखने तक ही सिमट कर रह गयी है !राष्ट्र कि एकता और अखंडता को बनायें रखना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है !यदि लोगों के बीच धर्म के आधार पर दरारे पैदा कर दी आज राजनीति के शुद्धीकरण गई तो राष्ट्र कि एकता एवं अखंडता को खतरा पैदा हो जायेगा !यदि नेता ही मर्यादाहीन हो जायेंगे तो देश के भविष्य को अन्धकार मे होने से कौन बचायगा ?आज राजनीति के शुद्धिकरण कि आवशयकता है ,धर्म के अनुरूप आचरण से ही राजनीति का शुद्धिकरण सम्भव है !आज संत का राजनीती से प्रभावित होना साधुत्व का अपमान है !परन्तु यह भी सही है कि आज के दौर मे राजा दशरथ के समय कि राजनीति नहीं हो सकती !लेकिन आदर्श राजनीती आज भी सम्भव है !लाल बहादुर शास्त्री  और अटल विहारी वाजपेयी के रूप मे दो उदहारण सामने है !इन दोनों ही नेताओं का चरित्र अनुकरणीय रहा है !इन दोनों ने ही प्रधानमन्त्री होने के पश्चात भी कभी अपने और अपने परिवार के स्वार्थ हेतु कार्य नहीं किया बल्कि राजनीती को एक नई दिशा दी जो अनुकरणीये थी !

महात्मा गांधी ने जहाँ राजनीती मे अहिंसा और अध्यात्मिक मूल्यों को बढ़ावा दिया तो वही शास्त्री और वाजपेयी ने सादा जीवन और उच्च विचार को अपने जीवन का धेय्य  बनाये रखा !आज भी राजनीति मे ऐसे ही लोगों कि आवशयकता है जिनमे लोगों के प्रति लगाव प्रेम तथा त्याग वा बलिदान कि भावना हो !जो अपना घर भरने मे  जुटे है ,वोह देश का हित कभी नहीं कर सकते !

दिनेश सक्सेना