शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

कुल्हड़ 


कुछ बीते बिखरे पल 




जब टूटा दिल का कुल्हड़!
तो आँखों से बही नीर नदियां !!
बंद आँखों से भी निकल दर्द बहा !
ढलका धार बनके खारा पानी !!
समझा नहीं तुमने फिर भी !
कीमत समझेगा कौन इस खारे  जल की !!
पिघलती नहीं आंसुओं से कठोर नियति!
कुछ तो हल्का हुआ होगा रो रो कर जिया!!
कल जब तुमने संग छोड़ दिया !
अब कहाँ ठीकाना मेरे कल का !!!!


दिनेश  सक्सेना

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