मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

मंथन

कविता 

दर्द बिखराब का 



सबसे छुपाकर वह पीड़ा हिर्दय की जो हंस दिया .
उसकी हंसी ने तो   आज मुझे    भी रुला दिया

सलीके से उठ रहा था हर एक दर्द का अक्ष
चेहरा बता रहा है की  आज कुछ गँवा दिया

आँखे रो रही थी जार जार आवाज़ मे ठहराव था
और दिल कहता है    मैंने सब    कुछ भुला दिया

खुद भी वह हमसे  बिछुड़कर अधूरा सा हो गया
मुझको भी भीड़ मे छोड़कर तनहा बना दिया !!! 

दिनेश सक्सेना

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

राजनीति



आज़म खान सेना को तो बख्श दो

लोक सभा चुनाव मे अधिक से अधिक वोट पाने के चक्कर मे नेता अपना मानसिक संतुलन खोते जा रहे है और विवादित व्यान बाजी कर रहे है !यह लोग संवैधानिक एवं लोकतान्त्रिक संथाओं को भी  निशाने पर लेने लगे है !वह अपनी मर्यादाएं तथा सीमायें भी भूलते जा रहे है ! इस सब मे हद तो आज़म खान ने पार की है कारगिल के ऊपर अपना अनर्गल व्यान देकर जिससे सेना का मनोबल भी टूटा है और सेना को दो भागों मे  विभक्त करने कि कोशिश की है धर्म के आधार पर !आश्चर्य होता है की यह नेता कितना गिरेंगे वोट पाने के चक्कर मे,आज़म खान ने कारगिल युद्ध को भी जाती और धर्म के चश्मे से ही देखा है जो केवल उनके अधकचरे ज्ञान का प्रतीक ही है ! समझ नहीं आता कि नेताओं का स्तर इतना नीचे तक गिर सकता है या फिर इनके खून के डी एन ए मे ही खराबी है या इनका खून जन्मजात ही गन्दा है !

भारतीये सेना धर्म के आधार पर नहीं जानी जाती है यहाँ ही सर्व धर्म सर्व भाव पाया जता है !सैनिकों के पहचान केवल भारतीय है इससे अधिक कुछ नहीं और होनी भी नहीं चाहिये !यहाँ ना कोई हिन्दू है और ना कोई मुस्लिम ,सिख या ईसाई है यहाँ उसका पहला धर्म राष्ट्र की सीमाओं के रक्षा करना ही है ! इतनी से बात इन मुस्लिम परस्त नेताओं की समझ मे क्यों नहीं आती यह एक विचारणीय प्रशन जिसका हल हर भारत वासी को खोजना पडेगा !कारगिल युद्ध जब हुआ था तब सम्पूर्ण भारत एक जुट था ना कोई मुसलमान था ना कोई हिन्दू ,सिख या ईसाई था वरन सब भारतीये थे !ऐसे मे सेना को धर्म के आधार पर बाँटने कि किसी भी कोशिश को क्षम्य नहीं कहा जा सकता !कम से कम सेना और सैनिकों को धर्म के नाम पर बाँटने की कोशिश से नेताओं को बाज आना चाहिये !चुनाव तो होते रहेंगे और उसमे हार जीत भी होती रहेगी !

राजनितिक लोग ही इस तरह की विदुवेश की बातें करेंगे तो भविष्य के बारे मे सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है ! हो सकता है कि अपनी बातों  को लेकर हमेशा विवादों मे रहने वाले आज़म खान ने  अनजाने मे तो ऐसा नहीं कहा होगा !इसे चुनावी धुर्वीकरण की एक गलत कोशिश के रूप मे ही लिया जाना चाहिये !इससे पहले भी आज़म खान ने भाजपा के प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए भी वेहद आपत्तिजनक वक्तव्य दिया है !नेताओं के इस तरह के किसी भी तर्क को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है !आज़म खान अपनी  भाषा सुधारों और यदि तम्हे कोई आपत्ति भारत से है तो पकिस्तान कुछ दिन रहकर देखो तुम्हे अपनी औकात पता चल जायगी !

दिनेश सक्सेना

बुधवार, 9 अप्रैल 2014

मंथन

कविता

समझ हमारी 



हमारी समझ से अपेक्षित थी बस इतनी सी बात!
स्वप्न शीशे की तरह दुनिया सदा से  पत्थरों सी!!
हमारी समझ से .......................................

चाहत की थी आरजुओं की वह भी हमने पायी!
जिंदगी लायी थी  अपने साथ मे अनेकों साये !!
साये बहुत गहरे है ओर रोशनी बहुत हल्की सी!!!
हमारी समझ से ......................................

केवल यहाँ विराना ओर वहाँ सिर्फ तन्हाई सी!
जिंदगी हमको यह कहाँ से कहाँ ले आयी थी!!
भटक गयी हमसे मंजिल ओर खो गयी राह सी !!!
हमारी समझ से ......................................

क्या कोई जिंदगी बेचेगा क्या जिंदगी कोई काटेगा!
हमने तो अपने दामन मे ता उम्र समेटे है बस कांटे !!
इधर उनकी बरात चली उधर दूकान फूलों की सजी !!!
हमारी समझ से ...........................................

दिनेश सक्सेना

मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

मंथन




कविता 

April Fools


विविधता में एकता का
एक मात्र उदाहरण भारत
संगम है त्रिनदियों का ही न,
भाँति-भाँति की लोंगो का भी
तो दिवसों की भरमार यहाँ
टुडे ईस मूर्ख दिवस आइ नाउ
आज परेशान बुद्धिमान सभी
इस बात को लेकर उठा-पटक है
भूले से बन न जायें मूर्ख कहीं
सतर्क बुद्धि को रखें है
बुद्धि के मान की नाप-तौल
मूर्ख सूत्र दिवस में उलझे है
मै भी उलझन में उलझी हूँ
खुद का आपमान करूँ कैसे हाहाहा 
तो मूरख कहाँ से लाऊँ 
दूजे को बोलूँ तो उल्टी गाली खाऊं 
फिर बधाई किसको दूँ
जग को या ख़ुद को हाहाहाहा
पर लाइन बड़ी बारीक़ यहाँ
मै जग को जग मुझको मूरख कहता
क्यूँ ? सोचा तुमने
मै उसको वो मुझको विश जो करता हैं
अदृश्य मूर्ख की डोर से बंधे हुए
हम दोनों ही हँसते हैं
फिर भी खुद को बुद्धिमान कहते है
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
………रेनू  सिंह