बुधवार, 9 अप्रैल 2014

मंथन

कविता

समझ हमारी 



हमारी समझ से अपेक्षित थी बस इतनी सी बात!
स्वप्न शीशे की तरह दुनिया सदा से  पत्थरों सी!!
हमारी समझ से .......................................

चाहत की थी आरजुओं की वह भी हमने पायी!
जिंदगी लायी थी  अपने साथ मे अनेकों साये !!
साये बहुत गहरे है ओर रोशनी बहुत हल्की सी!!!
हमारी समझ से ......................................

केवल यहाँ विराना ओर वहाँ सिर्फ तन्हाई सी!
जिंदगी हमको यह कहाँ से कहाँ ले आयी थी!!
भटक गयी हमसे मंजिल ओर खो गयी राह सी !!!
हमारी समझ से ......................................

क्या कोई जिंदगी बेचेगा क्या जिंदगी कोई काटेगा!
हमने तो अपने दामन मे ता उम्र समेटे है बस कांटे !!
इधर उनकी बरात चली उधर दूकान फूलों की सजी !!!
हमारी समझ से ...........................................

दिनेश सक्सेना

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