कविता
समझ हमारी
हमारी समझ से अपेक्षित थी बस इतनी सी बात!
स्वप्न शीशे की तरह दुनिया सदा से पत्थरों सी!!
हमारी समझ से .......................................
चाहत की थी आरजुओं की वह भी हमने पायी!
जिंदगी लायी थी अपने साथ मे अनेकों साये !!
साये बहुत गहरे है ओर रोशनी बहुत हल्की सी!!!
हमारी समझ से ......................................
केवल यहाँ विराना ओर वहाँ सिर्फ तन्हाई सी!
जिंदगी हमको यह कहाँ से कहाँ ले आयी थी!!
भटक गयी हमसे मंजिल ओर खो गयी राह सी !!!
हमारी समझ से ......................................
क्या कोई जिंदगी बेचेगा क्या जिंदगी कोई काटेगा!
हमने तो अपने दामन मे ता उम्र समेटे है बस कांटे !!
इधर उनकी बरात चली उधर दूकान फूलों की सजी !!!
हमारी समझ से ...........................................
दिनेश सक्सेना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें