बुधवार, 27 मई 2015

मंथन

कविता 


मन कर रहा है 


कब से प्रतीक्षा है तुमसे मिलने कि 
दीघ्र अंतराल के बाद आज. ……
बहुत मन कर रहा है तुमसे मिलने का 
मन को तो बहुत समझाया ……… 
पर दिल तड़फ उठा। .......... 
दिल को समझाया ……… 
तो आँखों ने झड़ी लगा दी  सावन की 
सावन को रोका तो साँसों ने तूफान ला दिया 
तूफ़ान को रोका तो दिमाग बोल उठा …
कब तक झूठ  का सहारा लोगे …… 
 बहुत याद आती है कबूल लो ....... 
मुश्किल हो जाएगी सम्हाल लो

दिनेश सक्सेना