गुरुवार, 22 मई 2014

मंथन

कविता 

नारी स्वाभिमान 


तुमको कुछ नहीं आता
कितना अजीब है
ये शब्दों का घाल मेल
एक ही पल में तुम्हारे अस्तित्व को
धूल में मिलाने वाला
कल मुझे भी ये वाक्य मिले
कल थोड़ा अजीब लगा था
पर आज चेहरे पर मुस्कान आ गयी
कल एक साथी ने कहा
तुम्हे कुछ नहीं आता
तो आज मै कहती हूँ
हे साथी मैंने कब कहा
मुझको सब कुछ आता है
तुम मेरे साथ चलो
मै तुमको पूर्ण कर दूँगी
मै तो खुद पर हँसती हूँ
क्यूँकि सच है कि
मुझको कुछ नहीं आता
नहीं आता मुझको
तुम्हारे अहम् के आगे झुकना
नहीं आता मुझको
तुम्हारे पैरों में गिर कर
अपनी खुशियों के लिए गिड़गिड़ाना
नहीं आता मुझेको
तुम्हारे निर्दयता के सामने टूट जाना
नहीं आता मुझको हर पल अश्रु बहाना
कहा आता है हमें कुछ
दृणता के साथ खड़े होकर
हर हाल में मुस्कुराने के सिवा


................ रेनू सिंह