मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

मंथन




कविता 

April Fools


विविधता में एकता का
एक मात्र उदाहरण भारत
संगम है त्रिनदियों का ही न,
भाँति-भाँति की लोंगो का भी
तो दिवसों की भरमार यहाँ
टुडे ईस मूर्ख दिवस आइ नाउ
आज परेशान बुद्धिमान सभी
इस बात को लेकर उठा-पटक है
भूले से बन न जायें मूर्ख कहीं
सतर्क बुद्धि को रखें है
बुद्धि के मान की नाप-तौल
मूर्ख सूत्र दिवस में उलझे है
मै भी उलझन में उलझी हूँ
खुद का आपमान करूँ कैसे हाहाहा 
तो मूरख कहाँ से लाऊँ 
दूजे को बोलूँ तो उल्टी गाली खाऊं 
फिर बधाई किसको दूँ
जग को या ख़ुद को हाहाहाहा
पर लाइन बड़ी बारीक़ यहाँ
मै जग को जग मुझको मूरख कहता
क्यूँ ? सोचा तुमने
मै उसको वो मुझको विश जो करता हैं
अदृश्य मूर्ख की डोर से बंधे हुए
हम दोनों ही हँसते हैं
फिर भी खुद को बुद्धिमान कहते है
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
………रेनू  सिंह

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