शुक्रवार, 28 मार्च 2014

कविता

कविता 

लिखना पढ़ना ,पढ़ना लिखना
कुछ दुनियाँ के सच को
कुछ उड़ती अपनी कल्पनाओं को
भॅवर जाल सा बनता जाता
खुद का जीवन
सत्य असत्य की माया में
कितना अदभुद है न
शब्दों का ये माया जाल
मै कोशिश करती हूँ
हर दिन हर पल
शब्दों को थोडा तोडूँ
सच से थोडा मोडूँ
पाप नहीं बस प्यार लिखुँ
दुनियाँ का सुंदर अहसास लिखुँ
पर अन्दर थोडा पागलपन है 
अच्छा लगता है सच पढ़ना
तो अच्छा कैसे लगता
सच को झूठ लिखना
मै कैसे लिखुँ खुश हूँ तेरी दुनियाँ में
कैसे लिखुँ मुझको तुझ पर विश्वास है पूरा
तूने भी निष्पक्ष कहाँ लिखा जीवन मेरा
......रेनू 

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