मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

मंथन

कविता 

दर्द बिखराब का 



सबसे छुपाकर वह पीड़ा हिर्दय की जो हंस दिया .
उसकी हंसी ने तो   आज मुझे    भी रुला दिया

सलीके से उठ रहा था हर एक दर्द का अक्ष
चेहरा बता रहा है की  आज कुछ गँवा दिया

आँखे रो रही थी जार जार आवाज़ मे ठहराव था
और दिल कहता है    मैंने सब    कुछ भुला दिया

खुद भी वह हमसे  बिछुड़कर अधूरा सा हो गया
मुझको भी भीड़ मे छोड़कर तनहा बना दिया !!! 

दिनेश सक्सेना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें