शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

मानवता


भूले क्यों मानवता का अर्थ?
कुछ जो दूजों से अधिक समर्थ
पापी अट्टाहस करते घूम रहे,
सहमी हुई है हर सुकुमारी
मानवता आज बैठी है हारी

रिश्तों का मतलब रहा नहीं
नारी ने क्या-क्या सहा नहीं
असंख्य रूप धरे दुशासन,
करते है वस्त्रहरण की तैयारी
मानवता आज बैठी है हारी


दिनेश  सक्सेना

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