गुरुवार, 30 जनवरी 2014

अभिव्यक्ति 


कह नहीं पाती  उसे जुबान जब 
भर आती आँखों मे पीड़ा तब 
कह जाती है आंसुओं की बूंदे 
नीर बहाता हूँ मैं जाने कब से 
नहीं  पाता अभिव्यक्ति पर 
अभिव्यक्ति वेदना कि क्या
नहीं समझ सकी तुम अश्रु को 
ढाल शब्दों  मे आंसुओं को 
करना चाहता हूँ मुखर इन्हे 
किन्तु अभिव्यक्ति नहीं पाता हूँ 
अपने ही जीते जागते अस्तित्व की 
होते है गीत मीठे कितने 
उनमे होती पीड़ा उतनी 
अपनी इस पीड़ा से ह्रदय भर आया 
रचना चाहता हूँ एक गीत नया 
लेकिन अभिव्यक्ति नहीं पाता  हूँ 
अपने ही बिखरे अस्तित्व की 


दिनेश  सक्सेना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें