अभिव्यक्ति
कह नहीं पाती उसे जुबान जब
भर आती आँखों मे पीड़ा तब
कह जाती है आंसुओं की बूंदे
नीर बहाता हूँ मैं जाने कब से
नहीं पाता अभिव्यक्ति पर
अभिव्यक्ति वेदना कि क्या
नहीं समझ सकी तुम अश्रु को
ढाल शब्दों मे आंसुओं को
करना चाहता हूँ मुखर इन्हे
किन्तु अभिव्यक्ति नहीं पाता हूँ
अपने ही जीते जागते अस्तित्व की
होते है गीत मीठे कितने
उनमे होती पीड़ा उतनी
अपनी इस पीड़ा से ह्रदय भर आया
रचना चाहता हूँ एक गीत नया
लेकिन अभिव्यक्ति नहीं पाता हूँ
अपने ही बिखरे अस्तित्व की
दिनेश सक्सेना
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