कविता
खुल कर सांस ले
तू
जीवन भरपूर जी
उसे उलझाने का
प्रयास न कर
मदहोश सपनो के
ताने बाने बुन
उसमे अटकने की
कोशिश न कर
बहते वक़्त के साथ
तू भी अविरल बह
उसमे डुबकी लगाने
की कोशिश न कर
आंतर मे चल रहे
अंतर्द्वंद को विराम दे
अकारण स्वयं से लड़ने की
कोशिश न कर
थोडा तो
परमात्मा पर छोड़ दे
सब कुछ लेने की
कोशिश न कर
जो मिल गया
उसी मे प्रसन्न रह
जो शान्ति छीन ले
उसे पाने की कोशिश न कर
अपने हाथों को फैला
खुलकर सांस ले
अन्दर ही अन्दर घुटने की
कोशिश न कर
दिनेश सक्सेना
दिनेश जी आप अपने हृदय मे श्रृंगार रस की तीव्र भावनाओं को लेकर प्रेम के नये आयामों को दर्शाया है वह वास्तव मे अति उत्तम है ! भाषा पर आपकी पकड़ अच्छे है ! यह एक उत्कृष्ट रचना है जो जीवन के दर्शन को दर्शाती है
जवाब देंहटाएंउर्मिला जी आपको रचना पसंद आये उसके लिए आपको हार्दिक धन्यवाद ! भविष्य मे भी प्रयास करता रहूँगा की आपकी आशानुरूप लिख सकूँ !!!!!
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