बुधवार, 15 अप्रैल 2015

मंथन

कविता 


सत्य --झूठ 


तुम जो कहो वह सत्य है 

मेरा सत्य …झूठ  है 

मै झूठ। …तू सत्य है 

यही आज की पैमाइश है 

विचार आगे बड़  चुके 

आत्मा मे भी घाव है 

तुम्हारी हठ से.……… 

अंतर मे  पीर है। …… 

सब कुछ सहन कर जाऊंगा 

झूठे तेरे तर्कों के आगे। .... 

तेरे पैरों तले ना  गिर पाउँगा 

आत्मा मे  घाव हो सह जाऊंगा 

तेरा अहित ना होने दूंगा। …। 

सब कुछ सहन कर जाऊंगा !!!!!!!!!!!!!!!


दिनेश सक्सेना

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