शनिवार, 8 मार्च 2014

मंथन

कविता 

नारी दिवस  


नारी आज के दिन तुम श्रद्धा हो , नवरात्रि में देवी हो
बाकी दिन अद्धा प्उवा हो , कम कपड़ो वाली बेशर्म बेहया हो और

मालूम है क्यूँ, क्यूँकि खुद को कुछ तुमने कभी माना ही नहीं
पिता के घर बन बेटी, बहन तुम उनके लिये समार्पित रही

उनकी ईज्जत की खातिर तुम, अपनी इच्छाओं को चढ़ाती रही, बलि बेदी पर
पति के घर पत्नी, बहू, माँ बन खुद को ही मारती रही, किसी की ख़ुशी वंश की खातिर

त्याग किया बलिदान किया, समर्पित रही आजीवन तुम किस आशा में
बस इसी लिए कि एक दिन नारी का भी दिवस होगा

पर सच बोलना, शर्म के घुँघट से ही सही, शब्दो का तुम ओढ़ना मत आडम्बर
क्या तुमने जो चाहा जीवन भर, तुमको वो आज मिल पाया

ओढ़ सबला का आडम्बरो से भरा लबादा क्या नही आज भी तुम अबला......

................ रेनू  सिंह 





 




















4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर, प्रभावकारी एवं सत्य से ओत-प्रोत 'अभिव्यक्ति' के लिए आभार. सच है कि नारि श्रद्धा से विज्ञापन तक के सफ़र में जग ने नारि उपयोग ही किया है. आज जिस छवि को नारि सशक्तिकरण के नाम से पुकारा जाता है शायद उस छवि के असली हकदार सोनिया, मायावती, शीला, जयललिता, ममता,आदि हो सकती हैं वरण सुनंदा पुष्कर जैसे सशक्तिकरण छवि के हक़कार के हाल को भी जग देखा है!!

    देखा है निर्भया के हाल को भी और सनी लियोने के लोकप्रियता को भी...!! यह सशक्तिकरण है या बाजार के उपयोग के तरीके...!!

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    1. धन्यवाद, प्रसंशा के लिए हृदय से आभार आपका ! ,हमे दुःख इसी बात का होता है कि दुनियाँ उस सत्य को देखना और मानना ही नहीं चाहती, जो असलियत में आज भी नारी की स्थित है, क्यूँकि उसका रूप उनकी कल्पनाओं से भिन्न है, और जो देखते है वो उस पर चाँदी का वर्क चढ़ा कर विभिन्न दिवसों के रूप में परोसते है, इस तरह सत्य परदे से बाहर ही नहीं आता

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  2. रेनू जी आपने आज के परिवेश मे नारी का सुन्दर तथा सशक्त विश्लेषण किया है

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