सोमवार, 10 मार्च 2014

मंथन

कविता 

मेरा दर्द 


मेरी जीवन की पुस्तक मे हर एक स्वप्न तुम्हारा था
कहानी तो मेरी थी पर वह कथानक तो तुम्हारा था

मेरी जीवन की यात्रा मे लोग तो यहाँ बहुत  सारे थे
पर मुझे जिसकी तृष्णा थी वह नाम तो तुम्हारा था

जो अकेले ही बह गए हम तुम्हारी स्मृति की बाड़ मे
मुड़ कर जो देखा तो बहुत दूर छूटा वह किनारा था

वह रात न वह दिन अपने, पर चाहतों का दौर तुम्हारा था
जो साथ रही यादें तेरी थी, ऋतुएं बदली पर तेरा साथ न था

मेरी नयनो  में अश्रु  और कितना दर्द दिल में सोया था
मुस्कराने वाले को क्या पता रोने वाला कितना रोया था  

दिनेश सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यबाद मन्याबर आशा करता हूँ कि आगे भी आप से इसी तरह मार्गदर्शन मिलता रहेगा ! आपसे निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग के समर्थक बने तो अधिक खुशी होगी !!! हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं