शुक्रवार, 14 मार्च 2014

एहसास




खिचड़ी 


कई दिनों से कुछ लिखा नहीं, क्यूँकि लोग मेरी पोस्ट पर अपना दिमाग चमकाने लगे थे, जिसकी चमक से मेरी आँखे भी चुंधियाने लगी, तो सोचा थोडा ब्रेक ले लू , आज माँ ने कहा..काहिल, कामचोर होली आ गई है, अपना रूम तो साफ कर लो, कुछ नही करना तो , हम भी प्रसन्न मन से उठे सोचे क्यूँ न आज पहले कई दिनों से जमी खोपड़ी की धूल, मिट्टी झाड़ दू कुछ लिख कर, पर लिखुँ क्या ? आज खिचड़ी लिखती हूँ, वही खिलाती हूँ, तो आज कुछ खिचड़ी ही खा लीजिये बाकि तो होली में पकवान खायेंगे ही , आज जीवन , मृत्यु, धर्म, राजनीत, दोस्ती, प्यार, व्यापार, शिक्षा सब थोड़ा-थोड़ा......

जीवन...सुंदर है पर थोड़ी मुश्किलें भी है, जीवन में करने तो हमेशा सद्कर्म ही चाहिए, पर कौन कौन से कर्म कर डालते है लोग, समझ से परे , तो अपने काम से काम रखिये, जीवन सुंदर ही रहेगा, दुसरो के चक्कर में पड़े तो समझो घनचक्कर बने, दुसरो को समझ तो कभी पाओगे नहीं, और खुद से भी हाथ धो लोगे सो टेक केअर l

मृत्यु..जीवन का आखिरी पड़ाव, वैसे तो मनुष्य की प्रवृति है, सब कुछ अपनी इच्छा अनुसार प्राप्त करने की, पर मृत्यु ही एक ऐसी दसा है, जो इंसान को अपनी इच्छा अनुसार प्राप्त नहीं होतीl शायद इसी ज़िद ने "इच्छा मृत्यु" की इच्छा को जन्म दिया, और मनुष्य ने इसकी भी मांग कर डाली वैसे सही भी है, इससे जीने की इच्छा को बल मिलेगा ,और जो बच्चे अपने बूढ़े माँ बाप को छोड़ देते है, या अन्य कारणों से जो व्यक्ति जीना नहीं चाहता, वो ससम्मान मर तो सकेंगे , जीवन की एक यही न्यूज़ मुझे सबसे अच्छी और आकर्षक लगी l

धर्म...वैसे तो मुख्यतः चार ही है, जिसको मैंने बचपन से जाना देखा और सुना, पर इसके बेटे, नाती पोते, बहुत है l तो खट पट हमेशा चलती है, कहते है न कि जहा चार बर्तन होते है, वहा खट पट होगी ही तो हो रही है, सब एक दूसरे के बाप बनने की कोशिश मे हमेशा, इसी लिए इसके मूल को भूल गये सब l ईश्वर एक थे हमेशा, पर अब बहुत हो गये है, लोग अपने-2 को बुलाते है, और बार-बार कपड़े बदल-बदल कर भगवान थक गये है, तो चाहे जो बुलाये आते नहीं l पर मै याद करती हूँ तो आते है, क्यूँकि मै बोल देती हूँ, जिस कपड़े में बैठे है उसी में आइये तभी l

राजनीत...बाप--बेटा--बेटी--बहु फिर नाती, पोते यही है..प्रजातंत्र की राजनीत, सब बदलाओ की आश में पर बदलेगा क्या ? जो विरासत में मिलेगा उसी की तो प्रस्तुति होगी, कपड़े नये और मॉर्डन होंगे बस , यानि चोर-चोर मौसेरे भाई ,प्रजातंत्र मे आग लगाई ,रोटी बनाई और सबने मिल बाँट कर खाई ,और जनता बुझी राख सी उड़ती रहे l

दोस्ती...बस शब्दों में रह गई है, क्यूँकि आज सब अपने जीवन और खुद को साबित करने में व्यस्त है, और खुद को स्थापित करने के लिए कुछ भी कर जाये, तो दोस्त कौन दुश्मन कौन आज पहचान मुश्किल है, पर इसका अहसास आज भी मस्त है सुखद है।

प्यार..तूने मारी एन्ट्री यार दिल मे बजी घंटी यार यही है प्यार, दर्द का सागर है, पर करना हर कोई चाहे, कुल मिला कर शक्तिशाली है, इंसान को इंसान से जोड़ता ही है।

व्यापार-व्यापारी..जो जितना धनवान वो उतना ही बड़ा चोर, ईमानदारी इनकी तिजोरी में बन्द, पर देश इन्ही से चलता है, तो सौ खून माफ़, सब खा कर भी ढाकर नहीं लेते।

खेल-खिलाड़ी...कुछ बने भगवान इसी मे, तो कुछ चोरों से कर गठबंधन बने सैतान, फिर भी मेरा देश महान , तो भगवानों को ससम्मान प्रणाम।

शिक्षा...सबसे महत्वपूर्ण विचारणीय टॉपिक पर इसकी हालत खस्ता, चोरों और अनपढ़ो के हाथों नीव का निमार्ण , मासूमों के हाथों में नाममात्र का तखती और बस्ता l क्या होगा कल भगवान ही जाने ?

स्वास्थ..इसमें एक महत्वपूर्ण बात....रोग का घर होते है पुराने तकिये, तो प्रत्येक दो साल मे बदल दे , अब घूरो न हमे, गर्ल फ्रेंड बस चले तो रोज बदलो, और तकिया बदलने के लिए..माँ, बहन की तरफ देखते हो, खुद बदल देना कोई न बदले तो, नही तो आगे चल कर gf भी नही बदल पाओगे।

इतना लिखे इससे ये तो साबित ही हो गया, न कि हम कामचोर नही है वाह......... 

रेनू  सिंह









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