गुरुवार, 20 मार्च 2014

मंथन

 
कविता

संतुष्टि


असंतुष्ट
प्रत्येक
व्यक्ति
क्यूँ ?
क्या?
कैसे?
में उलझा
क्या ऐसा ही ?
ये ही जीवन है।
जन्म मिला है
तो निश्चित मृत्यु भी है
फिर बीच का जीवन
इतना असंतुष्ट क्यूँ है
चलिये कुछ करते है
संतुष्टि जिससे मिल पाये
बस ध्यान हमे ये रखना है
पाकर जिसको ख़ुशी मिले
सच्चे मन से पाने का प्रयास करें
देकर जिसको संतुष्ट रहे
बिना भेद के देने का प्रयास करे 
जीवन से जो हम चाहें
क्या वो हमको संतुष्ट करे
सोचें समझे तब ही
अपने क़दमों को मंजिल की ओर करे
मृत्यु से पहले न
मृत्यु से जीवन का वरण करें
खुशियाँ दे खुशियाँ पायें
आओ कुछ ऐसा काम करे
सोन चिरैया भारत का हम
फिर से निर्माण करे
क्या रखा है ऐसे जीवन में
जिसमे खुद ही असंतुष्ट रहे
......................... रेनू  सिंह

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