रविवार, 16 फ़रवरी 2014

एहसास

काहानी

ताऊजी 


सेवा निवृती के बाद अपने ही जन्म स्थान पर जाकर बसने का मेरा पुराना सपना था !जहाँ पैदा हुआ ,खेला ,पड़ा और बड़ा हुआ वह जगहा कितनी ही यादों को आज भी मेरे अंदर ज्यों की त्यों ज़िंदा रखे थी ! स्नातकोतर पूरा होने के बाद जो अपना शहर छूटा तो फिर मुड़ कर पीछे देखने का समय ही नहीं मिला ! नौकरी करने आया था और यहाँ आकर काम मे उलझता ही चला गया ! नौकरी ,शादी ,बच्चे जिम्मेदारी बढ़ती ही जा रही  थी और सीमित आय मे ही सभी जम्मेदारी पूर्ण करनी पड़   रही थी !इन्ही सब कामों मे मैं उलझता ही जा रहा था !पता ही नहीं चला की कब बच्चे बड़े हो गए और मेरी सेवा  निवृति का समय भी करीब आ रहा था !

होते होते सेवा निवृति के लिए केवल एक वर्ष शेष रह गया था ,बच्चों का विवहा कर उनको अपने अपने स्थानो पर भेज कर मैं ने गम्भीरता से इस विषय़ पर विचार किया !लम्बी छुटटी ले कर अपने शहर ,अपने रिश्तेदारों के साथ थोड़ा थोड़ा समय बिता कर यह सर्वेक्षण करना चाहा कि रहने के लिए कौन सी जगह उपयुक्त रहेगी !घर बनवाना पड़ेगा या बनाबनाया ही कही खरीद लेंगे !मुझे याद है पिछली बार जब मैं आया था तब सुरेश चाचा के साथ छोटे भाई की अनबन चल रही थी !मैंने उन दोनों मे समझोता करवा कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली थी !छोटी बुआ और बड़ी बुआ भी रूखा और ठंडा सा व्यवहार कर रही थी !मुझे जाने क्यों चाचा भतीजे का मनमुटाव अच्छा नहीं लगा !

इस बार भी कुछ ऐसा ही लगा तो पत्नी ने समझाया ,"जहाँ चार बर्तन होंगे तो वोह खड़केंगे ही !मैं तो हर बार देखती हूँ !जब भी घर जाओ किसी न किसी से ! किसी ना किसी का तनाव चल रहा होता है !4 साल पहले भी सुरेश चाचा के परवार मे अबोला चल रहा था !" "लेकिन हम  तो उनसे मिलने गए न, तुम चाची के लिए साड़ी भी लाई थी " ""तब छोटी का मुँह सूज गया था !मैंने बताया तो था आपको !साफ़ साफ़ तो नहीं मगर इतना इशारा आपके भाई ने भी किया था की जो उसका रिश्तेदार है वोह चाचा से नहीं मिल सकता !"" ""अच्छा ?मतलब मेरा अपना व्यवहार ,मेरी  अपनी बुद्धि गए भाड़ मे जिसे छोटा पसंद नहीं करेगा उसे मुझे भी छोड़ना पडेगा "" ""और इस बार छोटे का परिवार सुरेश चाचा के साथ तो घी शक्कर जैसा है !लेकिन बड़ी बुआ के साथ नाराज़ चल रहा है !""

"वह क्यों ?" ""आप खुद ही देख सुन लीजिये न !मैं अपने मुँह से कुछ कहना नहीं चाहती !कुछ कहो तो आप कहेंगे नमक मिर्च लगा कर सुना  रही हूँ !"" पत्नी का तुनकना भी सही था !वास्तव मे आँखे बंद करके मैं किसी भी औरत की बात पर विशवास नहीं करता ! वह चाहे  मेरी माँ ही क्यों न हो ! अक्सर औरतें ही हर फसाद और कलेश का  बीज रोपती है !10 भाई  सालों तक साथ रह सकते है पर उनके बीच एक लुगाई आयी नहीं कि अलग अलग  कर दिए जाते है ! पूरी नौकरी के समय लगभग 100 -200 परिवारों की  कहानी तो बड़ी नजदीक से देखी सुनी ही है !हर घर मे वही सब ,वही अधिकार का रोना और कर्तव्यों को भूलना !वही महिलाओं को अपने परिवार को लेकर असुरक्षित रहना !पारवारिक कलह अधिकतर औरतों के कारण ही होती है !

मेरी पत्नी शुभा  यह सब जानती है !इसलिए कभी कोई राय नहीं देती !मेरे यहाँ घर बना कर सदा रहने के लिए भी तैयार नहीं है ! इसलिए वह चाहती है कि मैं लम्बे समय तक यहाँ टिक कर और निरीक्षण करूँ  क्योंकी दूर के ढोल सुहावने होते है  या वास्तव मे यहाँ प्रेम की नदी बहती है ! कभी कभी कोई यहाँ आया तो आपने उसकी आवभगत कर ली इससे यह तो स्पष्ट नहीं होता के उनका यह चरित्र है ! अल्प समय मे भला किसी का मन कैसे टटोला जा सकता है !हमारे खानदान के एक ताउजी है जिनसे हमारा सामना सदा इसी तरह होता रहा है मानो सिर पर उनकी  छत न होती तो हम अनाथ ही होते !सारे  काम छोड़छाड़ कर हम उनके चरणस्पर्श करने दौड़ते है !सबसे बड़े है !इसलिए छोटी मोटी  सलाह भी उनसे की जाती है !उम्रदराज है इसलिये उनकी जान पहचान का लाभ भी अक्सर हमें मिलता है !राजनीति मे भी उनका अच्छा रसूख है जिस कारण हमारे सारे  रुके काम हो  जाते है और हम लोग भी  ताऊजी   ताऊजी कर उनकी तरफ ही दौड़ जाते है !

हमें अच्छा खासा सहारा था उनका ,बड़े बुजुर्ग बैठे हो तो सिर  को एक आसमान जैसी अनुभूती होते है ! वही आसमान है हमारे ताऊजी !मैं  ताऊजी के लिए एक शाल लाया था उपहार स्वरुप !शुभा से कहा कि वह शाम को तैयार रहे उनके घर जाना है !छोटा भाई मुझे यूँ देखने लगा ,मानो उसके कानो मे गरम सीसा दाल दिया हो किसी ने ! शायद इस बार उनसे भी अनबन हो गयी हो , क्योकि हर बार किसी ना किसी से उसका झगड़ा होता ही रहता है !""आपका दिमाग तो ठीक है न भाईसाहब !आप ताऊ के घर शॉल लेकर जायेंगे ?बेहतर है मुझे गोली मार कर मुझ पर इस का कफ़न दाल दीजिये !"" स्तब्ध तो रहना ही था मुझे !यह क्या कह रहा है ,छोटे इस तरह क्यों? ""बाहर रहते है न आप ,आप नहीं जानते यहाँ घर पर क्या क्या होता है !मैं पागल नहीं हूँ जो सबसे लड़ता फिरता हूँ !मुकदमा चल रहा है चाचा का और मेरा ताऊ के साथ और दोनों बुआ उनका साथ दे रही है !सब कुछ है ताऊ के पास !15 -20  दुकाने है ,बाजार मे 4 कोठियां है ,ट्रांसपोर्ट कंपनी है ,एक शो रूम है !औलाद एक ही है और कितना चाहिये इंसान को जीने के लिए ?"" "" तो यह बात है लेकिन उनके पास जो है  वह उनका अपना है ,इसमें हमें कोई जलन नहीं होनी चाहिए ""!

""पर हमारा जो है वह तो हमारे पास रहने दे !कोई सरकारी कागज है ताऊ के पास !उसी के बल पर उन्होंने हम पर और चाचा पर मुकदमा ठोंक रखा है कि हम दोनों का  घर हमारा नहीं है ,उनका है !नीचे से लेकर ऊपर तक हर जगह ताऊ का ही तो दरवार है !हर वकील उनका दोस्त है और हर जज ,हर कलक्टर उनका यार है !मैं कहाँ जाऊ रोने ?बच्चा रोता हुआ बाप के पास जाता है पर यहाँ तो बाप सामान ताऊ ने ही मेरा गला काट दिया ,ताऊ की भूंख इतनी बढ़   चुकी है कि ……………""  उसके मुँह से यह सब सुनकर ,आसमान से नीचे गिरा मैं ,मानो मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व ही पारा पारा हो  होकर बिखर गया ! शॉल हाथ से छूट कर गिर पडी ,कानो को विश्वास नहीं हुआ ,सोचने लगा क्या कभी मैं ऐसा कर  पाउँगा छोटे के बच्चों के साथ ? अपने छोटे भाई के दर्द को मैं कभी समझ ही नहीं पाया ,मैं भी इस घटनाक्रम मे  बराबर का दोषी हूँ ,मुझे उसके परेशानी जाननी चाहिये थी !  फिर भी मैंने छोटे को समझाया और ताउजी के यहाँ जाने का निर्णय कर लिया ,इस सारे घटनाक्रम का पटाक्षेप करने के लिए !शुभा  से बोला की तैयार हो जाओ ,शॉल लेकर मैं और शुभा शाम को ताउजी के यहाँ चल दिए जैसे सदा जाते थे वही इज़ज़त और मानसम्मान ले कर !उनके घर पहुंचा तो स्तब्ध रह गया उनका व्यवहार देख कर !

क्यों ? भाई की वकालत करने आये हो ,तो मत करना वह घर और विजय का घर मेरे पिता ने खरीदा था ! तो क्या हुआ आपके पिता  हमारे बाप के भी तो पिता थे ! यह कैसे हो सकता है कि  बाप ने किसी बेटे को इतना दिया और किसी बेटे को कुछ नहीं इसका कैसे पता चले ?"" तो जाओ तहसील मे जाओ पता करो कागज निकलवाओ " ""तहसीलदार से हम क्या पता करे आप ही बता दीजिये आप तो बड़े है इस घर के"" !मैंने तो बता दिया की यह सब मेरा है !माफ़ कीजियेगा ताउजी  मैं आपके सामने अपनी जुवान खोल रहा हूँ !क्या हमारे पिताजी इतने नालायक थे जो दादा जी ने उन्हे कुछ न देकर सब कुछ आप को ही दे दिया ! और सुरेश चाचा को भी कुछ नहीं दिया !"" मेरे सामने जुवान खोलना तुम्हे भी आ गया अपने भाई के तरह !"" "" मैं गूंगा हूँ आपसे किसने कह दिया ताउजी ? इज्जत और सम्मान करना जानता हूँ तो क्या बात करना नहीं आता होगा मुझे !ताउजी ,आपका एक ही बच्चा है और आप भी कोई अमृत का घूँट पी कर नहीं आये है !यहाँ की अदालतों मे आपकी चलती है !मैं जानता हूँ मगर प्रकृति के भी अपनी एक अदालत है जहाँ न किसी की चली है और न किसी की चलेगी ,वहाँ अन्याय किसी के साथ नहीं होता !आप क्यों अपने बच्चे के लिए लम्बी चौड़ी बाद दुआओं के फेरिस्त तैयार कर रहे है ?हमारे सिर से यदि आप छत छीन लेंगे तो क्या हमारा मन आपका भला चाहेगा ?"" दिमाग मत चाटो मेरा जाओ जो बन पड़े कर लो"" "",हम कुछ नहीं कर सकते आप जानते है ,तभी मैं समझाने  आया हूँ ताउजी "" 

85 साल के वृद्ध की आँखों मे पैसे की इतनी भूख फिल्मों मे तो देखी  थी पर घर मे नहीं ! स्वार्थ का नंगा तांडव आज पहली बार अपने जीवन मे देखा था !उस रात मैं बहुत रोया !छोटे और सुरेश चाचा की लड़ाई मे मैं भावनात्मक रूप से उनके साथ हूँ मगर उनकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि मैं इस देश का केवल एक आम आदमी हूँ जिसे दो वक़्त की रोटी कमाना ही आसान नहीं ,वह गुंडागर्दी और बदमाशी का सामना कैसे करेगा !बस इतना ही कह सकता हूँ कि भगवान् ताउजी जैसे  लोगों को सद्बुद्धी दे और हम जैसो के सहनशीलता तथा सब्र ! इतना सोचकर मैं पुनः वापिस जाने की तैयारी करने लगा !……………………

दिनेश सक्सेना

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