सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

मंथन

कविता 

उम्र का चढ़ाव 


उम्र दराज होने पर हमें कुछ यूँ  इशारा हो गया
हम  राह इस जिंदगी का ओर प्यारा हो गया 

क्या हुआ जो चेहरे पर पड़ने लगी यूँ  सिलवटे
कदम दर कदम पर साथ उनका गवारा हो गया 

जुल्फ व रुखसार से बडके भी जहाँ कोई हुस्न है
दिल हंसी उनका है ये हमको नज़ारा हो गया 

खो गयी अब जवानी डगमगाते से अब पग है
एक दूजे का अब मगर  हमको सहारा हो गया 

है खुदा से गुजारिश की साथ उनका ही मिले
यदि रंगीन दुनिया मे फिर आना हमारा हो गया

दिनेश सक्सेना

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