मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

एहसास

कहानी

गलत  सोच

कामनी बहुत देर से रसोई मे खाना बना रही थी ,जिसके कारण उसे कमर दर्द और थकान होने लगी थी ! महमानों के आने का समय भी करीब आता जा रहा था ! दिवाली का अवसर था अतः बहु को उपहार लेकर अपने मायके भी जाना था ! तभी मायके से चंचल की माँ का फ़ोन आया कि उसके भाई और भाभी भी इंग्लैंड से आये हुए है ! अपने कार्य की व्यस्तता के कारण वोह उसकी शादी पर भी नहीं आ सके थे इसलिए वोह तुमसे और दामाद जी से अब मिलना चाहते है !
उधर कुकर की सीटी पूरे जोश से बज रही थी ! सीटी बजते ही कामनी  ने गैस बंद कर दी और ड्राइंग रूम मे आकर बैठ गयी जहाँ उसकी बहु चंचल गिफ्ट पैक करने मे व्यस्त थी !
""अरे मम्मी देखो ना मैं अपने भाई भाभी के लिए क्या गिफ्ट लायी हूँ ! बस पैक कर रही हूँ ………… आपको दिखाना चाहती थी पर जल्दी मे थी ,वोह सब अभी यहाँ आने वाले है ,इसलिए पैक कर दिए ! बहु ने कुछ पैक किये गिफ्ट की तरफ इशारा किया ,तभी उसका पति अंदर आया और चंचल से बोला कि एक कप चाय बना लाओ ! आज ऑफिस मे बहुत थक गया हूँ "" अरे आप देख नहीं रहे कि मै गिफ्ट पैक कर रही हूँ ! माजी आज आप ही बना दीजिये न चाय इनके लिए ! मुझे अभी तैयार भी होना है ! मेरी छोटी भाभी बहुत फैशनेबल  है !मुझे उनकी टक्कर पर ही तैयार होना है !""इतना कहकर चंचल अपने बाकी बचे गिफ्ट पैक करने मे फिर मशगूल हो गयी !

शाम को कामनी के यहाँ 10 -12 लोग बैठे हुए थे ड्राइंग रूम मे ! उनमे बहु के तीन भाई ,उनकी बीबियाँ ,बहु के मम्मी -पापा और बच्चे और उन सब के बीच महमानो के तरह कामनी की बहु चंचल भी विराजित थी !कामनी ने इशारे से अपनी बहु चंचल को  बुलाया और रसोई घर मे ले जाकर कहा। ""चंचल सबके लिए चाय बना दे ,तब तक मैं पकोड़े तल  लेती हूँ ""क्या मम्मी मायके से इतने सारे लोग आये है और मैं उनके साथ न बैठूं ,आप कह रही है कि मैं यहाँ काम करूँ ? कब से आपको बोला था कि एक नौकर रख लीजिये ,आप है की कुछ सुनती ही नहीं है !अब मुझसे काम को मत कहिये मेरे घर वाले मुझसे मिलने आये है !अगर मै यहाँ रसोई मे लगूंगी तो उनके आने का फायदा क्या ?इतना कहकर चंचल रसोई से बहार निकल गयी और कामनी ने शांत रहकर काम  करना ही उचित समझा !""

कामनी ने जैसे तैसे पकोड़े बना लिए ,और फिर चाय बनाने मे  लग गयी , चाय नाश्ता ड्राइंग रूम मे पहुंचकर वोह उल्टे पैर लौट आयी और खाना गरम करने मे व्यस्त हो गयी ! रसोई मे ठहाकों की आवाज़े जब तब उनके कानो तक अब भी पहुँच रही थे ! कामनी के पति एक दो बार रसोई मे आये यह कहने के लिए कि कुछ रोटियों  पर घी मत लगना ! चंचल की भाभी घी नहीं खाती है और खाना जल्दी लगाओ बच्चों को भूख लगी है ! कामनी तब और जल भुन गयी जब जाते जाते बहु की माँ ने कहा ""क्या बहनजी आप तो हमारे साथ दो पल भी नहीं बैठी ,कोई नाराजगी है क्या ? "" सबके जाने के बाद चंचल भी सोने चली गयी !

कामनी एकेले ही रसोई सम्हालने मे व्यस्त हो गयी ! अगले दिन कामनी का मन हुआ की वोह अपने पति और बेटे के साथ कल के हालात पर चर्चा करे पर दोनों ही जल्दी अपने अपने ऑफिस चले गए ! दो तीन दिन बाद फिर चंचल की भाभी चंचल से मिलने के लिए आ गयी और चंचल को भी वोह अपने साथ खरदारी के लिए ले गयी ! बेटे की शादी के बाद से यह सिलसिला अनवरत यूँही चलता रहा ! कभी किसी का जन्म दिन कभी किसी की शादी कभी कुछ तो कभी कुछ ……………चंचल के घर वालों के रोज रोज आने से कामनी तंग आ चुकी थी ! आखिर कार एक दिन कामनी ने इस विषय पर अपने पति के साथ चर्चा की "सुनो जी चंचल ना तो अपने घर की जिम्मेदारी सम्हालती है ना ही अपने पति  प्रतीक का ध्यान रखती है ,प्रतीक के सारे कम यहाँ तक कि उसके  खाने से लेकर कपडे तक मुझे ही धोने पड़ते है ! उसका बस एक ही काम है घूमना ,खाना बाज़ार  और मायके जाना ! लगभग दो साल पुरे होने जा रहे है शादी को ,बहु आज भी अधिकतर अपने मायके ही ज्यादा रहती है या फिर हर समय घर से बहार कभी खरीदारी के नाम पर कभी खाना खाने के नाम पर , बचा कुचा समय फ़ोन और लैप टॉप पर खेलने मे पूरा निकालती है !""
 
पति ने गम्भीरता पूर्वक अपनी पत्नी की सम्पूर्ण बात सुनी और कहा की देखो कामनी ""तुमको ही शौक था कि तुम्हारी बहु भरे पुरे खानदान की हो ,दिखने मे  सुन्दर हो ,स्मार्ट हो !तुमने स्वम ही तो चंचल को पसंद किया था ,कितनी लड़कियां नापसंद करने के बाद तुमने इसे चुना था ,अब तुम घर के मामले मे हम मर्दों को न डालो तो अच्छा है ,नहीं तो तूफ़ान आ जायेगा और घर भी दो जगह बँट जायेगा जो किसी भी द्र्ष्टिकोड़ से उपयुक्त नहीं होगा !"" इनकी बात सुनने के बाद मैं  सोचने पर विवश हो गयी की यह सच ही तो कह रहे है ,इन सब के लिए मैं स्वम उत्तरदायी हूँ !फिर भी अपना मन हल्का करने के लिए मेरे मन मे विचार आया क्यों ना मैं अपना दुःख अपनी बहन के साथ बांटू , इसी उथल पुथल मे कब अपनी बहन के घर पहुँच गयी पता ही नहीं चला ,वोह मेरे पड़ोस मे ही रहती थी !उसने मुझे देखा और बोली  ""दीदी आज मेरी याद कैसे आ गयी ""विभा ने मुझसे पूछा !""बस यूँ ही तू बता कैसी है ?"" मैं  तो ठीक हूँ दीदी पर आपको क्या हुआ आप तो कमजोर होती जा रही हो ""विभा ने कहा !संभवतया कामनी  की परेशानियां उसके चहरे पर भी झलकने लगी थी !
 
कामनी ने आपनी बात विस्तार से अपनी छोटी बहन को बतायी पर कोई अनुकूल निष्कर्ष नहीं निकला !कामनी इसको अब अपनी नियति ही मानने पर विवश हो गयी ! वोह समझ चुकी थी कि एक गलत सोच और अति महत्वकांशा  मे लिया गया निर्णय सदा गलत होता है ! अब समय निकल चुका  था भूल सुधार का ! उसने मान लिया था कि एक गलत सोच सबको बर्बाद कर सकती है। ............................ 

 

दिनेश सक्सेना

 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर. नयी पड़ी लिखी एवं तथाकथित प्रगतिवादी सोच की नयी पीड़ी की सोच के साथ पुरानी पीड़ी का आधुनिक तड़क भड़क पर मोहित हो कन्या के गुणों को तिरोहित कर रूप सोंदर्य को ही कसोटी के आधार पर चयनित बहु का यथार्थ चित्रण.

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  2. मेनारिया जी यही पीडी का अंतर आज मानवीय गुर्ण को छिन्नभिन्न कर रहा है !सामाजिक ढाचा किस तरह से अपने ताने बने मे उलझ कर पूर्ण समाज को विघटन के कगार पर ले आया है ,यह एक विचारनिए प्रशन आज मुँहबाये खडा है जिसका समाधान निकलना जटिल नज़र आता है !

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