मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

मंथन





कविता 

डर 

 अब हर बात से डर  लगता है 

अब हर अपने से डर लगता है 

बन तो सभी जाते है  अपने पर 

धोखा देने वालों से डर लगता है 

इस जहां मे लोगों के लिए बदल 

दिल गए है, झूटे लोगो से डर लगता है 

बहाते है जो अपनों का ही  खून 

अब खून के रिश्तों से ही डर लगता है !!

 

दिनेश सक्सेना

 




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