शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

मंथन

दर्द के साये



यादों के साये तले,दिल बहकने लगा ,
मेरे नासूर दिल का, भी रंग बदलने लगा!
कितने नजदीक आकार ,जख्म दिए मुझे,
सांसे  चलती रही ,पर दम निकलने लगा !
पथ पर मेरे हज़ार , कांटे बिखेर कर ,
खुद को वो अब मेरा  ,हमसफ़र बनाने लगा !
दिए जो जख्म उसने ,उसमे मै प्यार तलाश करता रहा ,
मुझे वो प्यार करते करते ,खुद को  दर्द मे डुबोने लगा !
इतना करीब आया वो ,की भूल ना सकी जीवन मे ,
जो बचा था वो लुट गया ,उसको याद कर रोने लगा !


दिनेश सक्सेना

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