कविता
छटपटाहट
हम याद मे तुम्हारी छटपटाते रहे
तुम फ़िज़ाओं मे मस्ती लुटाती रही
सदियां गुजरती रही ऑंसू थम न सके
आओगी एक दिन यही ख़याल आते रहे
रही होंगी तुम्हारी भी कुछ मजबूरियां
सोच कर यादें तुम्हारी हम भुलाते रहे
हम से ही बेबफाई तुम्हे रास यूँ आ गयी
कलंक हमारे नाम ओ वफ़ा यूँही लगाती रही
हम राह तुम्हारी देखते रहे रात और दिन
झूठी तुम तसल्ली बस यूँही दिलाती रही
दिनेश सक्सेना
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