शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

मंथन

कविता 

तेरी याद आती है 


बरसों से तेरी याद आती रही
आँखे यूँही सदा  बरसती रही

रुक नहीं पाते अब आँसूं कभी
रात रात भर बस यूँ रोती रही

अपने को तो समझा ही लेती
याद आते ही गहरी सांसे लेती

फिर याद आते है वही पुराने कल
हंसते खिखिलाते वही सुन्दर पल

कभी तुमसे मेरी नज़रे हटती नहीं
ज्यादा खुशी थी कोई गम था नहीं

तेरी मुस्कराहट भी मेरी हंसी थी
तेरे गम भी मेरी ही उदासियाँ थी

आज मेरा दोस्त मुझसे रूठ गया
मनाना चाहती थी पर  चला गया

बतियाना चहाती हूँ पर बतयाती नहीं
मेरी हर सुबहा हर रात उससे होती थी

दिनेश सक्सेना 

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