मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

एहसास

कहानी

मेरी अपनी 

भूली बिसरी यादोँ के एहसास 


जनवरी का मास कडाके की ठण्ड मे, मैं अस्तपताल  की गैलरी  मे  बेंच पर बैठा शुन्य की ओर ताक रहा था !मेरी स्तिथी ठीक ऐसे थी जैसे कोमा के मरीज की होती है ,कुछ नहीं सूझ रहा था ,मन मस्तिष्क पूर्ण रूप से खाली था समझ नहीं आ रहा था कि क्या होगा मेरी नज़रें शल्य चिकित्सा विभाग के मुख्या द्वार पर ही टिकी थी !वहाँ मेरी एक महिला मित्र की ह्रदय का ऑपरेशन चल रहा था ,क्योंकी अचानक ही उसे ह्रदय आघात हुआ था !

रात  को सोते समय उसे बेचैनी महसूस हो रही थी ओर बाद मे वोह ह्रदयघात मै परिवर्तित हो गई !जबकि उसने सदा ही नियमित जीवन जिया था खान पान उसका सादा था ओर वोह नियमित योग अभ्यास भी करती थी !वोह रोज ही मेरे साथ स्कूल जाती थी ! हम दोनों ही उस समय कक्षा बारहा मे पड़ते थे !ओर अपने विद्यालय से साथ साथ ही वापिस लोटते  भी थे !
उसके बाद दोनों की अलग अलग स्थान पर नौकरी भी लग गयी थी ,यह समय अब हम दोनों के ही बिछुड़ने का था जिसको हमने नियति मान लिया था ! कुछ वादे ,कुछ यादें लेकार हम अलग हुए थे ! बाद मे मै धीरे धीरे अपने काम मे मशगूल होता गया कभी फुरसत ही नहीं मिले उसके बारे मे सोचने की !समय गुजरता गया पहले माह फिर साल होते होते, एनेक साल बीत गए पता ही नहीं चला ,कब मेरी शादी हो गयी ओर समय के अंतराल के बाद इश्वर ने मुझे दो होनहार बच्चों का पिता बना दिया ! अब उनकी जिम्मेदारी उठाने का एक ओर कार्य मेरी दिन चर्या का भाग बन गया !अपनी ओर से मै  पूर्ण रूप से इस कार्य की भी पूर्ती कर रहा था कि अचानक से मेरे जीवन मे एक महत्वपूर्ण बदलाव आया ओर मेरी फैक्ट्री जिसमे मै कार्य रत था बंद हो गई !

मेरी मुश्किलें बढती जा रही थी जिम्मेदारी निभाना ओर कठिन होता जा रहा था !ऐसे मे उसको याद कर पाना तो दूर उसका कभी विचार भी मेरे जेहन मे नहीं आया !भगवान की मुझपर कृपा थी की इतनी कठिन परिस्थिति मे भी मै अपना कार्य पूर्ण रूप से संपन्न कर सका !मेरी बेटी की पढाई,मेरे बेटे की पढाई दोनों पूर्ण हो चुकी थी ओर दोनों का विवाह भी भगवान की असीम कृपा से संपन्न हो चुका  था ,दोनों बच्चे अपनी अपनी गृहस्थी मै 
सुखी थे !मुझे वोह सब कुछ मिला जो एक भाग्यवान व्यक्ति को मिलता है !मे अपने बच्चों के साथ बहुत खुश था !
अक्समात समय बदला ओर मे अब खाली था ,क्योंकि मे सेवा निवृत हो चुका था !एक दिन खबर आई की मेरी मित्र बहुत विमार है ओर अस्तपताल मे भर्ती है !तुरंत वहाँ पहुंचा और एक बेंच पर जाकर बैठ गया ! आपरेशन थियेटर की बहार अभी भी लाल बत्ती जाली हुई थी और मै अपने ही ख्यालों मे खोया उसके बारे मे ही सोच रहा था !अक्समात रिसेप्शन पर कुछ हलचल हुई कुछ डॉक्टर उस ओर दिखाई दिए मे भी अनमने मन्से उस ओर वडा और एक डॉक्टर से बात की ,उसने बताया की अब वोह खतरे के भाहर है मन को सकूं मिला यह सुनकर !
कुछ देर वहाँ रूकने के बाद मै वहाँ से वापिस आने को मुड़ा ही था की पीछे से डॉक्टर की आवाज़ आयी जो मुझे ही बुला रहे थे ! मै धीरे धीरे उनकी तरफ बढने लगा तभी डॉक्टर ने कहा की आपका नाम पुकार रही है वोह आपसे मिलना चाहती है ! आश्चर्य और खुशी का मेरी ठीकाना ना था क्योकि यह सब इतनी जल्दी हुआ के कुछ और सोचने समझने का अवसर ही नहीं मिला !मै तेज तेज क़दमों से उस कमरे कि ओर वडने लगा जिस कमरे मे वोह थी ! पुरानी यादोँ का तूफ़ान लिए मेने कमरे के अंदर प्रवेश किया  और उसके बिस्तर कि ओर पहुँच गया !वोह बहुत ही मध्यम आवाज़ से मुझे ही पुकार रही थी !!

ज्यादा बात करना उचित नहीं समझा ओर तेज क़दमों के साथ बहार निकल आया अगले दिन मिलने की कामना लेकर !मन अशांत था किसी से कुछ कह भी नहीं सकता था इस सम्बन्ध मे ,रात मेरी यूँही गुजर गयी यादों के मंथन मे ,सुबहा सवेरे  उठते ही फिर मे अस्तपताल कि ओर जाने लगा तेज तेज क़दमों के साथ ,मेरी समझ के बहार कि बात थी कि वहाँ उसका कोई सगा सम्बन्धी क्यों नहीं था !उत्सुकता थी यह सब जानने के !
अस्तपताल पहुंच कर उसके कमरे मे प्रवेश किया तो उसे कोई बहुत अच्छी हालत मे नहीं पाया !उसने अपनी आँख खोली और इशारे से मुझे अपनी ओर बुलाया मै लगभग उसके बिस्तर के समीप जकार उसकी बात सुनने के चेष्टा करने लगा ,आवाज़ बहुत धीमी थी अतः मुझे लगभग अपने कान उसके मुह के पास ले जाने पड़े !वोह धीरे से बोली मेरा अब कोई नहीं है जीवन के इस अंतिम पड़ाव पर तुम मुझे सद्गति देना ,मैंने तुम्हे हर पल अपने अंदर जिन्दा रखा है हर साँस मे तुम्हारा ही नाम था ,इसी कारण मैंने विवाह नहीं किया क्योंकि तुम्हे भुला नहीं सकी तो फिर क्यों किसी ओर के बारे मे सोचती !बस मेरे लिए कुछ कर सकते हो तो इतना कर दो कि मुझे अंतिम यात्रा का अंतिम पड़ाव अपने द्वारा करा दो !

उसके बाद वोह निःशब्द  हो गयी सदा सदा के लिए ! और मै उसकी अंतिम यात्रा  के इंतज़ाम के लिए निकल गया !भारी मन से उसे अंतिम विदाई दी और समस्त क्रिया कर्म से निवट कर धीरे धीरे थके क़दमों के सात अपने निवास स्थान कि ओर चल दिया !उसकी यादे आज भी मुझे सोने नहीं देती ,पुरानी यादे धीरे धीरे मेरे मन मस्तिष्क पर पुन्हा स्थापित हो जाती है और मै अपने को कही न कही उसका दोषी मानता हूँ.......................


दिनेश सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत एहसास है यादो का ये कभी न भुलाने वाला पल जो हमें कभी हँसता है ,गुदगुदाता है और रुलाता है फिर एक दिन हम उसे अपनी नियति ही मनन बैठते है /

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    1. प्रकाश जी नमस्कार यह सत्य है की यह यादों का एहसास है ,इस विधा मे मैंने पहली बार लिखा है ,प्रयत्न करता रहूंगा की आगे भविष्य मे भी इस तरह लिखता रहूँ !बस आप अपना सहयोग इसी तरहा मुझे देते रहे !

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