मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

मंथन

कविता 

पत्र तुम्हारे 


प्रणय जैसे भाव
पिपासु होंठ से -अक्षर
वह तुम्हारे पत्र

गुजरते बीते पलों की
सतरंगी यादों का
सप्तस्वर जादू

या सुगम एहसास के
अतिरेक की कुछ गुनगुनाती
जार्जट की साड़ी  सी पीली धूप 
उसमे महकती खुशबु

बस गए
बेकरार दिल के गांव मे
पैजनिया बंधे कुछ पांव मे
किस अधिकार से कभी कभी
तुम्हारे पत्र

प्रणय जैसे भाव
पिपासु होंठ -से अक्षर
वह तुम्हारे पत्र 


दिनेश सक्सेना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें