कविता
कैसे क्या हुआ कि दिन ?
स्य्हा पड़ गया !
मेरे मन के कोने टूटे
स्वर शब्द डूब गए
शायद हम अधिक मिले
कि अब सबसे उूब गए
बंद पलकों के आगे सहसा
जल प्रपात फूट गया
धीरे धीरे तुम उठे
बिना कुछ कहे चल दिए
हम होले से उठाये स्वम को
बिना सहे चल दिए
खुद बा खुद शब्द ही सारे मूक हुए
कैसे क्या हुआ कि दिन ?
स्य्हा पड़ गया !
दिनेश सक्सेना
क्या हुया
कैसे क्या हुआ कि दिन ?
स्य्हा पड़ गया !
मेरे मन के कोने टूटे
स्वर शब्द डूब गए
शायद हम अधिक मिले
कि अब सबसे उूब गए
बंद पलकों के आगे सहसा
जल प्रपात फूट गया
धीरे धीरे तुम उठे
बिना कुछ कहे चल दिए
हम होले से उठाये स्वम को
बिना सहे चल दिए
खुद बा खुद शब्द ही सारे मूक हुए
कैसे क्या हुआ कि दिन ?
स्य्हा पड़ गया !
दिनेश सक्सेना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें