सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

एहसास


कहानी


तलाश 


ट्रेन छोटे से स्टेशन पर रूकी तो सांझ हो चुकी थी ! बरसाती मौसम था मन्द मन्द पुरवइया वह रही थी ,और मैं अपने ही शहर मे देर तक खड़ा चारों ओर देख रहा था ! मेरे अतिरिक्त वहाँ कुछ भी नहीं बदला था ! धीमी धीमी वर्षा भी शुरू हो चुकी थी ! यहाँ टैक्सी के स्थान पर बस रिकशे मिलते थे ,पर वारिश के कारण  वोह भी नहीं दिखायी दे रहे थे !इसलिए मैं पैदल ही चल पड़ा घर की ओर !वारिश के साथ साथ मुझे भूली बिसरी यादों की बौछारें भी  भिगोने लगी थी !

विधालय के समय ही मेरे सूखे जीवन मे नम हवाओं की तरहा मंजू का प्रवेश हुआ था ! बनावट से दूर बहुत ही शालीन व्यक्तित्व की मल्लिका थी  वोह ! उसका रंग रूप मेरे भीतर प्रपात सा झरने लगा था ! आकर्षक ,भोली और मासूम सी  थी वोह !अक्सर वोह खाली समय मे लाइब्रेरी मे जाती थी ,उसकी उपस्तिथि से वहाँ का कोना कोना महकने लगता था ! जितने देर वोह वहाँ रुकती मैं  अपनी सुधबुध खोये रहता !

अचानक कुछ दिनों तक मंजू विधयालय  नहीं आयी तो विधयालय भी मुझे सूना सूना लगने लगा था !पड़ने लिखने से मेरा जी उचट गया ! एक दिन मैं निरुद्देश्य लाइब्रेरी  मे गया तो अकस्मात ही एकांत मे किताब लिए वोह बैठी दिखाई दी !अगले ही पल मैं ठीक उसके सामने खड़ा था !कहाँ थी इतने दिनों तक ? प्रशन सुनकर वोह चौकी  पर मुझे इसकी  परवाह कहाँ थी , मैं था ही इतना विचलित कि मेरे लिए एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा था ! बता कर तो जाना था मैं बिना रुके बोलता रहा ,वोह खिलखिला कर बोली " क्यों परेशान हो गए थे आप ?" उसने यह सवाल बड़ी मासूमियत से पूछा ! मैं इधर उधर झाँकने लगा ,मुझे कोई उत्तर नहीं सुझाई दिया !

""हम अभी अभी यहाँ शिफ्ट हुए है ,सारा सामान यहाँ वहाँ फैला  पड़ा था उसको करीने से लगाने मे कुछ दिन तो लगते ! अरे आप खड़े क्यों है आईए बैठीये !"""मैं निःशब्द उसके समीप ही बैठ गया !अब हम दोनों ही चुप थे !पता नहीं कितनी देर तक ऐसे ही बुत बने बैठे रहे ! अगर गति कही थे तो वोह केवल पलकों मे ,जो निरंतर दोनों ओर से झपक रही थी ! मन मे बहुत कुछ उमड़ रहा था। … …… यह   स्तिथि मेरी ही नहीं उसकी भी थी ! शायद हम दोनों की आँखों से शब्द झड़ रहे थी ! मैं उसकी धड़कने महसूस कर रहा था ,वोह मेरी धड़कनो पर अधिकार समझ रही थी ! दोनों के बीच नयनो की मूक भाषा मुखर हो रही थी ,संवेदनाए  जब मुखरित होती है तो शब्द स्वतः मूक हो जाते है !

चेहकते चहकाते जीवन के 5 वर्ष कैसे फिसल गए पता ही नहीं चला ! गुजरे वक़्त के एक एक पल को हमने कैसे सहेजकर रखा यह हम  ही जानते है ,क्योकी इस बीच हम  एक दुसरे को और बेहतर तरीके से समझ चुके थे !हमारे इम्तिहान के दिन थे मैं बहुत नर्वस था ,वोह मुझे अपने साथ घर ले गयी !मन मे एनेक शंकाए जन्म ले रही थे ,कुछ ऐसे ही हालत मंजू की भी थी ! इस संकट की घड़ी मे मंजू के पापा ने हमारी हिम्मत बढ़ायी और इस दुविधा से बहार निकलने मे हमें जो सहयोग दिया वोह सरहानीय था ! मंजू मेरे घर वालों को पहले से ही पसंद थी ,वोह अक्सर मेरी मौसी के यहाँ आती जाती रहती  थी ! 

किन्तु इन सब बातों से पहले मुझे अपना भविष्य निर्धारित करना था सब यही चाहते भी थे ! जल्दी ही मुझे एक अच्छी नौकरी मिल गयी जिससे मैं  संतुष्ट भी था !मैंने नौकरी ज्वाइन कर ली, मंजू से इस वायदे के साथ की जल्दी वापिस आकर तुमसे मिलूंगा !"""मैं इन्तजार करूंगी ,कहकर उसके आँखों से गंगा जमुना बहने लगी!मेरा शरीर यहाँ रहेगा पर मन और आत्मा तुम्हारे साथ रहेगी !"""""""""""चलते वक़्त मैंने उसे आलिंगन मे  लिया और धीरे से चूम लिया !

गंतव्य पर पहुँचने के बाद शुरू के दिन बहुत व्यस्त रहे , मैं काम मे खोता चला गया और वोह मुझे याद करती रही ! शुरू शुरू मे हम  दोनों के बीच पत्र व्यवहार चलता रहा पर धीरे धीरे वोह भी कम होता गया !कुछ दिन की मैं छुट्टी लेकर  कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाता वापिस आ गया ! मंजू स्टेशन पर इंतज़ार करती मिली ,मुझे देखा और लिपट कर रो पडी थी ! अवकाश के दौरान हम दोनों का विवाह भी हो गया ,अब समस्या थी की उसको अपने साथ लेकर जाऊ या घर पर माता पिता  के पास छोड़ कर जाऊ ! पिताजी के सुलझे व्यक्तित्व ने इस समस्या का हल जल्दी निकाल दिया और निर्णय यह हुआ की मंजू मेरे साथ ही जायगी ! मेरा मन भर आया यह सोचकर के बुजुर्ग हम बच्चों का कितना ख्याल रखते है !

मंजू की देह गंध से ईट पत्थरों का बना 3  कमरों का मकान अब मधुबन बन गया था ! मेरी हर सुबहा बसन्ती 
हर दिन ईद और हर रात दिवाली हो गई थी ,फिर भी मन कही अशांत था शायद मंजू के  अकेले पन के कारण क्योंकी मैं दिन भर ऑफिस मे रहता और वोह घर पर अकेली ! मैंने उसे लेडीज क्लब ज्वाइन करने की सलहा दी लेकिन उसने हंस कर टाल  दिया ! साहित्य के प्रति मंजू का लगाव बहुत था अतः मैंने उसे प्रेम चंद ,जयशंकर प्रसाद ,महा देवी वर्मा आदि आदि  की एनेक किताबे ला दी ! जिसमे  अधिकतर उसकी पसंदीदा किताबे थी ! मैंने हंस कर पूंछा तुम इन किताबों से बोर नहीं होते !""""""इनमे हर किताब अपने मे पूरा दर्शन है ,इनके कथानक लेखकों की कठोर तपस्या का प्रतिफल होते है जिन्हे वोह अपना तनमन जला कर रचते है !आज लोगों मे  तनाब और हताशा हावी है तो इसलिए की वोह किताबों से दूर हो गए है """""""""""""""""मैं उसकी बात सुनकर निरुत्तर हो गया !

इसी बीच मेरे बॉस का तबादला हो गया और नई  बॉस आ गयी जिसका नाम रागनी था ! उसने आते ही सारी कार्य शैली मे परिवर्तन कर दिया और मुझे अधिक जिम्मेदारी दे दी ,जिम्मेदारी मिलने के साथ साथ मेरा प्रमोशन भी हो गया !अब मेरा कद बड़  चुका  था और मै ऑफिस के हर छोटे बड़े निर्णय मे एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा था !अब मेरा जॉब टूरिंग हो गया था और अधिकतर समय मेरा  बहार ही  व्यतीत होने लगा था ! इधर मंजू की मुश्किलें और बढ़  रही थी अकेले रहने के कारण ! मैं इंसान से मशीन मे बदल चुका था !"""""""""""तुम इतने बदल जाओगे मैंने कभी इसकी कल्पना  नहीं की थी ,""""""""""मेरी उपेक्षा से तंग आकर एक दिन उसके सब्र का बाँध टूट गया """""""""""""मुझसे बात करने को तुम्हारे पास दो पल भी नहीं है !जब से आयी हूँ इस चारदीवारी मे ही कैद हूँ ,कभी कही घुमाने भी नहीं ले गए """"""""""""" मेरी मजबूरी समझने की कोशिश करो ऐसे नौकरी और ऐसे अवसर मुश्किल से ही मिलते है ,यही मौक़ा है उचाईयों को छूने का !

"""""""""""""तुम पहले ही इतना आगे जा चुके हो ,जहाँ से मै तुम्हे दिखाई नहीं देती इससे और आगे गए तो """"""""उसका गला रुंध आया ! यह क्या कह रही हो ,मैं अब और सहन नहीं कर सकती ! यह कह कर उसकी आंखे भर आयी और मैं बुत की तरह खड़ा का खड़ा रह गया !""""""""""मैं जीती जागती इंसान हूँ ,मेरा शरीर भी हाड मांस का बना है ! मेरे सीने मे भी दिल धड़कता है ,हर क्षण तुम्हारी मदभरी बाते सुनने का मन करता है !
मेरे मन मे जमी रख को कुरेद कर देखते तो समझ  जाते कि मैं पल पल किस भयानक आग से सुलग रही हूँ """""""

मैं उसकी बातों से बहुत डर गया और मेरे अंदर कही न कही एक अंजाना भय समा गया ! अगले दिन मैंने छुट्टी की अर्जी भेज दी और उसको घुमाने ले गया ! किन्तु वोह तनिक भी शांत नहीं दिख रही थी ,एक ज्वालामुखी बन रहा था जो कभी भी फट सकता था मैं सहम गया ! पर नियती को कुछ और मंजूर था !ओफ़िस जाने  पर पता चला की मेरी बॉस मन ही मन मुझे बहुत प्यार करती है ! यह एक और विस्फोटक समाचार था मेरे लिए !
मैं जीवन चक्र मे फसता जा रहा था, समझ नहीं आ रहा था की आगे मेरे जीवन के दिशा और दशा क्या होगी !
अपनी बॉस का यह घिनोना रूप आज  मैंने पहली बार देखा था ! हिसाब किताब ,जमा जोड़ ,नफा नुक्सान ,छल प्रपंच सब मेरी जिंदगी का हिस्सा बनते जा रहे थे मेरे ना चाहते हुय भी !

मेरी आँखों से नींद उड़ गयी थी ,मैंने पर्दा खींच कर खिड़की खोली बहार वतावरण अब भी शांत था !आकाश मे पूरी आभा के साथ चमकता चाँद थोडा नीचे कि ओर झुक आया था !रात ढलने को थी चाँद धीरे धीरे पृथ्वी का स्पर्श काने को आतुर था !शायद यही प्रेम का शाश्वत रूप है ………जिसे रागनी देह की आंच मे झोक देना चाहती है !मैं  निर्जीव सा सोफे पर पसर गया !पत्र हाथ  मे लिए युही बैठा रहा ! होश आते ही स्टेशन पहुंचा और जो भी पहली ट्रैन मिली उसी मे बैठ गया अपने पीछे उन तमाम बंधनो को तोड़ कर जिनके कारण मैं दोराहे पर पहुँच गया था !

प्यार तो एक नाजुक एहसास है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है !सहसा एक सम्मोहक सी गंध फिजाओं मे घुलने लगी ,जो मेरी आत्मा  मे पहले से ही  गहरे तक उतरी हुई थी ! मेरे जीवन को गति देती गंध मेरी मंजू की ही थी ,और उसे सदा के लिए  अपने आलिंगन मे समेटने के जनून  को लेकर मैं  लौट कर आया भी था ................... शायद यही मेरी सटीक तलाश भी थी ...............................

दिनेश सक्सेना

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