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सोमवार, 3 जुलाई 2017
मंथन,
कविता
काली स्याही
घनघोर काली स्याही से
लिखी है विधाता
ने मेरी नियति
है नहीं
एक भी हर्फ़
रौशनी का
तुम जो
बनना चाहती
हो परछाई मेरी
सुनो नीव के
पत्थरों कि .......................
परछाई नहीं
हुया करती
दिनेश सक्सेना
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