सोमवार, 29 अगस्त 2016

मंथन


कविता 



सखी 



कर्तव्य के सतपथ पर नहीं जानता की
वह कौन है...............
कोई शक्ति संजोय मानवाकृति या
कोई देवी...................


जब जब ....................
डूबा घोर अन्धकार में
ज्योति पुंज बन,
आशा की किरण जगाती हो


जब जब हृदय.............
जला मेरे क्रोध ज्वाला में
शशि बन.....................
शीतल शान्ति सी दे जाती हो


घायल ...................
पड़ा महासमर भूमि मे
विजया बन................
विजय पथ दर्शाती हो


दीप चक्षु युक्त अधिपति मेरी
या...........................
कोमल हृदय स्वप्न पथ पर जब भी मिलना मुझसे
वादा.....................
मैं मेरे मन की सुंदरता दे करूँ स्वागत तेरा


दिनेश सक्सेना


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