मंगलवार, 26 जुलाई 2016

मंथन

कविता 

रूप ------यौवन  



 



तुम केवल विषय हो, या
कल्पना हो तुम स्वप्न लोक  की
रूप -योवन तुम्हारा देख ...
मन्त्र मुग्ध हूँ ...................... 
        






स्याह जुल्फें ,कजरारे नयन ,
चंचलता है निगाहों मे 
चेहरे का श्रृंगार ऐसा 
खूबसूरती निखर निखर जाये 



नजाकत से भरी हुयी नखरीली 
सी तेरी मुस्कान ,नूरानी चेहरा 
है यह, या चाँद जमीन पर उतर आया 
हसीं आदयें सब कुछ मन को भाया 



क्या तुम्हारी खुशियों के लिये बुनूँ मैं शब्दों के
अदाओं के मायाजाल या सीधे शब्दों में कह दूँ 
 तुमको तुम्हारे शब्दों में उत्पन्न होते है जो भाव, 
अंतर  गहराईयों से चाहूँ तुम्हारे लिये सुख, समृद्धी 



जब भी मैं आऊं, तुमको हँसता हुआ ही पाऊं
कभी ह्रदय तल  कि गहराई से  चाहूँ तुमको
कभी मांगू  शान्ति कि असीमित दुनियां 
तुम्हारे चंचल नखरीले सौन्दर्य के लिए !!!!!!!!!! 





दिनेश सक्सेना 

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