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सोमवार, 18 जुलाई 2016
मंथन
कविता
उपेक्षा
अपना
समग्र ,अर्पण -समर्पण
करके तुम्हें
भले ही लिखूं
तुम्हारे लिये
कितनी भी
प्रणय रचनायेँ
ज्ञात मुझे है
नहीं प्रेषित हो पायेंगी
तुम्हारे ह्रदय पटल तक
त्याग देंगी
यह प्राण अपने
तुम्हारी उपेक्षा की
देहलीज़ पर
दिनेश सक्सेना
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