शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

मंथन

कविता 

सीधे शब्द 


क्या तुम्हारी खुशियों के लिये बुनूँ मैं
शब्दों के, अदाओं के मायाजाल
या सीधे शब्दों में कह दूँ
नहीं अभी नहीं है मुझमें कोई भी भाव
न प्रेम, न दया, न करूणा, न घृणा के

पर रंग विहीन नहीं है हृदय मेरा मै जानूँ
जब पढ़ती हूँ तुमको तुम्हारे शब्दों में
उत्पन्न होते है जो भाव, वही तुम्हारे लिये है
और वही तुम्हारे शब्दों के लिये भी है
तुम भी हो इंसान, मै भी हूँ इंसान
अभी मृत नहीं है मुझमें इंसानियत
तभी हृदय की अतल गहराईयों से चाहूँ
तुम्हारे लिये सुख, समृद्धी , सम्मान,
शान्ति की असीमित दुनियाँ। …
 जिसमें जब भी मैं आऊं,
तुमको हँसता हुआ ही पाऊं
.

                              ...................... …………… रेनू सिंह

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