गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

मंथन



कविता

माँ तेरे लिए 



                                  
 कमी क्या हो गई माँ दूध मे तेरी,
या  परवरिश  मे आज कल
क्यूँ लूटते है इज्ज़तें  सड़को पर
अबलाओं की आज कल
क्या तेरा दूध भी हो गया बाजारू आज कल
क्यूँ दे रही संताने ऐसी
शर्मसार जो तुझको कर रही है आज कल
वो भी तो सोये तेरे ही आँचल मे होगे
जो छीन लेते है जिस्म से कपड़े, आबरू आज कल
किस मोह मे आज भी तू अबला बनी है
कोख मे ही लड़कियों को गर मर जाने तू दे रही
तो ख़ामोश दरिंदों के लिए बैठ क्यूँ गई है आज कल
माँ तेरे लिए ये प्रश्न मेरा है, क्यूँ सोचती नही है ?
मेरे जैसों के लिए तू आज कल
कब तक घुटन बंदिशों में जीते रहे हम
 तेरी प्रबल इच्छाओं के आज कल ?

.................... रेनू सिंह

3 टिप्‍पणियां:

  1. रेनू जी आपने आज के विषय तथा समस्या पर भावपूर्ण कविता लिखी है !समाज की वास्तविकता को दर्शाया है ,सुन्दर अभिव्यक्ति आशा है की आगे भी इस तरह आपके लेख ,कहानियाँ ,तथा कवितायेँ पड़ने को मिलती रहेंगी !

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    1. धन्यवाद..आभार आपका आदरणीय ! बस कोशिस की है ,आपने अपने ब्लॉग मे योगदान करने के काबिल समझा...इसके लिए बहुत-बहुत आभार व धन्यवाद आपका l

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  2. शुभ प्रभात रेनू जी आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक अभिनन्दन है मेरी ओर से ! आपकी पहली रचना के लिए हार्दिक बधाईयां!आप इसी तरहा लिखती रहे भविष्य मे भी !

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