बुधवार, 5 फ़रवरी 2014


अनोखा बंधन 


हमारी आकृति के 
सारे अक्स  ही 

धुंधले पड़े ,
सारे नज़ारे है 
पग जिस दिशा मे भी जाये 
नज़र दीवारे ही दीवारे आये 
चाहा बहुत अब तो 
तोड़ ही डाले सभी बंधन 
मगर यह काम करे कैसे 
यह बंधन भी तुम्हारे 
हम  भी तुम्हारे !!


दिनेश सक्सेना

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