शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

एहसास

व्यंग्य

इस भ्रष्टाचार को क्या नाम दूँ



रोज रोज चक्कर लगाने से क्या आपका काम हो जायेगा ,क्यों यहाँ आकर रोज सर पर बैठ जाते है ! अभी आपकी फ़ाइल मेरे पास नहीं आयी है जब आयेगी तब आना ! पर एस डी  आई कार्यालय से तो फ़ाइल डेढ़ महा पहले ही आ चुकी है यहाँ ,क्या बात करते हो इसका मतलब मैं  झूट बोल रहा हूँ आपसे ,जाइये जब फ़ाइल आयेगी तब आईयेगा !ठीक है धन्यबाद शर्मा जी मैं बाद मे आता हूँ ! एक सप्ताह बाद मैं फिर कार्यालय पहुंचा और बोला शर्मा ही नमस्कार , अरे भाई ………बैठ जाइये खड़े क्यों है ?शर्माजी बड़ी विनम्रता से बोले ! ठीक है धन्यबाद। ……… वह ऐसा है। ............. मुझे इस बात का डर है कही मैं बैठ गया तो मेरा दिल खड़ा न हो जाये इसलिए शर्माजी ,मुझे खड़ा ही रहने दे और मुझे संक्षेप मे यह बताइये कि क्या किया जाये ?मैंने अपना रंग बदलते हुए कहा !वह बोले आप तो बहुत विद्वान मास्टरजी है। अरे भाई ,बैठिये तो ,मुझे भी तो सेवा का मौक़ा मिले आपकी। पूरे कार्यालय मे तो आप आपको स्कूल मे पड़ने पढ़ाने से छुट्टी मिली नहीं। .......... अब सेवानिवृत हो गए है तो कम से कम अब तो हम आपके सान्निध्य का कुछ लाभ उठा सकें !शर्मा जी ने अपने खुर्राटपन  का प्रदर्शन किया !

मैं बैठ गया ! उन्होंने चपरासी को बुलाकर मेरे लिए पानी लाने  का आदेश दिया और मेरी तरफ मुखातिब होकर बोले आपने इतने दिन शिक्षा विभाग मे काम किया है फिर भी आप इस तरह बचपने की बात करते है यह उम्मीद नहीं थी आपसे ,शर्मा जी ने गिरगिट के तरह अपना रंग बदल कर कहा !मैं भी यही कहने वाला था कि आप लोगों ने मुझे इतने वर्षों मे परखा ही नहीं कि मैंने अपने सेवा काल मे कितनी कुर्बानियां दी है पर कभी अपने सिद्धांतों से समझोता नहीं किया ! मैं गर्व पूर्वक बोला ! शर्मा जी ने तब कहा कि आपने कितना नुक्सान किया है अपना ,कभी आपने अनुमान लगाया है ?लाखों रूपए का। …………… अगर आपने मात्र कुछ हज़ार खर्च कर दिए होते तो आज आपको कितना अधिक धन मिलता !अच्छा आप यह बताइये कि क्या हमने अपने सिद्धांत से समझोता किया है ,कभी हमने इन्क्रीमेंट या ट्रांसफर फ्री किया हो सदा ही इसके बदले कुछ न कुछ लिया ही है ऑफिस की भी आचार संहिता होती है और हम उसी के अनुरूप कार्य करते है !शर्मा जी ने बात साफ़ की ! इसका मतलब फ़ाइल यहाँ यूँही नहीं आयेगी मैंने उखड़ते हुए कहा !

उन्होंने बात को फ़ौरन संभाला ,अरे मान्यवर ,आपके घर से ऑफिस की दूरी मात्र पांच मिनट की है यहाँ तक पहुँचने मे पचास मिनट क्यों लग गए ? मैं  बताता हूँ रास्ते मे जाम मिला होगा और भी अवरोध आये होंगे तभी तो इतना समय लग गया ! शर्मा जी की बात बीच मे अधूरी रह गयी क्योकी उन्हे बुलाने उनके साहब का चपरासी आ गया ! जिस कमरे मे वह गए थे वह कप्यूटर रूम था जिस पर बहार लिखा था ,कृपया जूते बहार उतार कर प्रवेश करे !उसे पड़कर मुझे बुश का जूता प्रकरण याद आ गया और मे सभी राष्ट्र के अध्यक्षों तक जा पहुंचा जिन्होंने  उस चटपटे जायकेदार वयंजन की इच्छा की और वह पूरी हुयी ! अब तो हमारे यहाँ जम्मूकश्मीर और हरयाणा के लिए भी वही जायकेदार वयंजन आयात कराये जा चुके है !फिर ख़याल आया कि यह वयंजन अब पहले जैसे महत्व के नहीं  रहे ,! यदि मैंने शर्मा जी को जूता डिश चखायी, तो ये खुद को उस मुख्यमंत्री के कद का समझने लगेंगे और मेरे जूते का सम्मान घट  जायेगा !

इस खोकली ईमानदारी पर अपनी तो पूरी जिंदगी बर्बाद की ही और मेरे भी कर डाली !कही दो चार बच्चे होते तो आज हम सब भीख मांग रहे होते !मैं सोच ही रहा था कि इतने मे शर्मा जी आ गए और बोले कि रेट दस हज़ार का है निकालो और अपनी पेंशन ले लो अरे कम से कम अपनी बेटी के शादी तो ढंग से कर लो मास्टरजी !शर्मा जी ने साफ़ साफ़ कहाः और यह सुनकर मेरे सरे आक्रोश पर ताला  सा लग गया ! मैंने शर्मा जी से कहा मैं किसी का धर्म भ्रष्ट नहीं करना चाहता सच तो यह है कि मेरी बेटी की शादी तय हो चुकी है !यह पैसा जितनी जल्दी मिल जाता उतनी जल्दी मैं उसकी शादी कर डालता ! अब मैं बेचारगी पर उतर आया था ! पर शर्मा जी टस  से मस  न हुए और बोले मास्टरजी रूपए दस हज़ार दीजिये और अपना काम करवा लीजिये बिना उसके कुछ नहीं हो सकता ! दस हज़ार रूपए लेकर आ जाये और अपना चेक लेकर चले जाये शर्मा जी ने दो टूक लहजे मे कहा !मंजूर है मुझे मैंने कहा !

शर्मा जी फिर मुझे समझाते हुए बोले देखीये मास्टर जी जैसे बिटिया की शादी  मे खुशी खुशी दहेज़ दिया जाता है ,जैसे किसी देवता को खुश  करने के लिए प्रसाद चढ़ाया जाता है वैसे ही प्रजातंत्र के इस मंदिर मे प्रसाद चढ़ाते समय मन गन्दा नहीं करना चाहिए ! आपके द्वारा चढ़ाया गया प्रसाद बी एस ए से लेकर शिक्षा मंत्री ,मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक पहुंचता है !किन्तु यह बात मुर्ख जनता कहाँ समझती है वह तो इसे भ्रष्टाचार कहती है ,पूजा तोड़े ही मानती है इसे !भाई मास्टर जी अब आप इस भ्रष्टाचार को कुछ भी नाम दो पर  इसे भ्रष्टाचार मत कहो !मैंने शर्मा जी के हाथ पर दस हज़ार रूपए दिए और अपना काम करवाकर लौट आया !पर आज भी मैं यह सोचने पर विवश हूँ कि इस भ्रष्टाचार को क्या नाम दूँ !यही है आज के राजतंत्र का जनतंत्र !

दिनेश सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. दुखद स्थिति है देश की, देश वासियों की मानसिकता की... भ्रष्टाचार अब अत्याचार का रूप ले चूका है... और इससे छुटकारा मुश्किल तो नहीं है पर इससे छुटकारे के लिए प्रभावकारी प्रयास वाली मानसिकता मुश्किल है!

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  2. बात सही कह रहे है मिश्रा जी भ्रष्टाचार वास्तव मे अत्याचार का रूप ले चुका है पर मै निराश नहीं हूँ मुझे अभी उम्मीद है की परिस्तिथि अभी भी हाथ से बहार नहीं है मोदी जी के आने के बाद अंतर जरूर आएगा !मै आश्वस्त हूँ !

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