सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

मंथन

कविता 

प्रेम एक सत्य है 

 

प्रतीक्षा मे कोई सीमा नहीं होती 
स्मृति का कोई समय नहीं होता

अनवरत मेरी सांसे जब तक
मैं , मैं ही होता हूँ  तब तक

दूजा न कोई होता पास मेरे 
क्या मांगना तुमसे मिलो तुम

सांसे सांसों से प्राण आत्मा से
ह्रदय ह्रदय से ,प्राण प्राण से

हो एकीकार तुम ,तुम ना रहो
मैं , मैं ना रहूँ ऐसा दे दो मुझको 


अभिराम प्रिये , कल्पना हो साकार प्रिये
तुमको निमंतरण देता हूँ मैं ,तुम से हम होने को

पल का तुम मूल्य समझ लो नव जीवन जीने को
एक निश्चय अब तुम कर लो जीवन तरंग जीने को


दिनेश सक्सेना 






 

 



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