कविता
आवारा मन
आज बरखा का
रुख देख,आवारा मन क्यों भटका
कभी इस गली ,कभी उस गली
कभी बारिश से भीग
कभी फूलों की महक में डूबा
कभी घनघोर रातों मे भटका
कभी इस गली ,कभी उस गली
कभी उड़न खटोले बैठा मन
कभी नाव की सैर करता मन
कभी देख मौसम की हलचल
कभी सुनता झरने की कलकल
कभी फुहार मे भीगता मन
कभी ठण्ड से सिहरता मन
कभी प्यार से तुम बुलाती
कभी अगन से तुम झुलसाती
दिनेश सक्सेना
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