गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

मंथन

कविता 

एक  सपना


श्रृंगार छूटा ,भाव मन घायल ,
धुंद की भेट हुयी कल्पना मेरी!
वह करुण दृष्टी पडी धूमल,
अब भी है संकल्प मिलन!
एक सपना आज भी है,
एक शेष अपना वो कल!
आशा , विश्वास घायल,
उनके दर्शन का है संकल्प!
सपना है अब आस मिलन,
कर्म  छूटा भक्ती घायल!!

दिनेश सक्सेना


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें